बुधवार, 22 अक्तूबर 2008
क्या हम हिंदुस्तानी नहीं है
मै मुंबई मे रहता हूँ, कल मै खुश रहना चाहता था क्योंकि भारतीय क्रिकेट टीम ने विश्व-चैंपियन ऑस्ट्रेलिया पर शानदार जीत दर्ज की थी । किंतु मेरी खुशी कम थी क्योकि रविवार को रेलवे भरती बोर्ड की परीक्षाए देने मुंबई आए उत्तर-भारतीय छात्रो को "मनसे" कार्यकर्ताओ ने बर्बरता पूर्वक पीटा था । मै भी बिहार का हूँ,इसलिए मै दुखी नही था मै हिंदुस्तानी हूँ इसलिए दुखी था ।इस कार्य के प्रेरणास्त्रोत "मनसे" संस्थापक राज ठाकरे को मुंबई पुलिस ने मंगलवार तडके गिरफ्तार किया । गिरफ़्तारी की खबर फैलते ही मनसे कार्यकर्ता एक बार फिर सडको पर उतर आए,कई ऑटोरिक्शाओ और टैक्सियो को आग के हवाले किया गया,कुछ बेस्ट की बसो पर भी हमले हुए,मेरे पिता जो कि काम से जल्दी बाहर निकल गये थे एक घंटे मे ही लौट आए । मै वैसे आमतौर पर घर से देरी से निकलता हूँ, और टेस्ट मैच का परिणाम भी निकलनेवाला था इसलिये मैच खत्म होने के बाद ही घर से निकला ।सडके सुनसान थी , ईक्का - दुक्का वाहन ही चल रहे थे , बीस मिनटो के इंतजार के बाद मुझे बेस्ट की बस मिली । दफ़्तर पहूँचने पर भी चारो ओर इसी बात की चर्चा थी "भैया " विरुद्ध "धरती-पुत्र" की ।मेरी एक मराठी महिला सहकारी का कहना था " राज ठाकरे जो भी कुछ कर रहे है वो हम मराठीयो की भलाइ के लिये कर रहे है यदि उत्तर भारतीय मुंबई मे नही आएंगे तभी हमारे मराठी युवा बेरोजगारी से बच पाएंगे " जब मैने इस पर उन्हे कहा कि इसके लिए परीक्षा देने आए विद्यार्थीयों को पीटने की क्या जरुरत थी तो मेरे एक दूसरे सहकारी ने जवाब दिया कि इन नौकरियो के लिये इश्तेहार केवल उत्तर भारतीय अखबारो मे दिये जाते है जबकि महाराष्ट्र के मराठी अखबारो मे नही ।इस विषय पर मै पोस्ट के अंत मे या अगली पोस्ट मे लिखूँगा, इन बातो का जिक्र मैने इसलिए किया क्योकि इन संवाद-परिसंवाद ने मुझे ये सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या हम हिंदुस्तानी नही है ।हर कोइ ये क्यो कहता है कि वो मराठी है , बिहारी है , पंजाबी है ये है, वो है, क्या वो इनमे से कुछ भी होने से पहले हिंदुस्तानी नही है । हमारे देश मे साधनो के अनुपात मे जनसंख्या अधिक है इसलिए नौकरियाँ पाने के लिये लोगो की लंबी लाइने लगती है, लेकिन मैने मुंबई मे मैने ये कभी नही देखा कि कोइ मेहनती और काबिल युवा बेरोजगार बैठा है,जिसने भी सच्ची लगन से मेहनत की है उसे देर - सवेर सफलता अवश्य मिली है ।हमारे देश का संविधान ये कहता है कि देश का कोइ भी नागरिक देश के किसी भी हिस्से मे जा कर रह सकता है अपना जीवन - यापन कर सकता है लेकिन क्या राज ठाकरे जैसे नेता अपने राजनीतीक स्वार्थ के लिए खुले-आम संविधान को मानने से इनकार नही कर रहे है । क्या एसे नेता वही पुरानी सफल नीती जिसके बल पर अंग्रेजो ने हम पर १५० वर्षो तक शासन किया, फिर से नही आजमा रहे है ।ये जनता को टुकडो मे बाँट देना चाहते है ताकि उनपर शासन कर सके ।जब तक हम स्थानीय स्तर से उपर उठ कर,राष्ट्रीय स्तर पर नही सोचेंगे तब तक न तो हम निजी तौर पर और न ही एक राष्ट्र के रुप मे आगे नही बढ सकते है।
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