गुरुवार, 28 नवंबर 2013

आधुनिकता या विचारशून्यता

बहुचर्चित दोहरे हत्याकांड केस मे इसी सप्ताह फैसला आया, और समाज कि दिशा बदलनेवाले इस एतिहासिक फैसले को सुनकर मेरे मन मे कई प्रश्न उठे,विचारो का द्वंद्व हुआ तो मैने इस विषय पर लिखने का निश्चय किया ।आधुनिकता की ओर तेजी से बढ रहे इस समाज की जडे क्या इतनी खोखली हो गई है कि युगो से चले आ रहे पारस्परिक प्रेम से भरे संबंधो मे अविश्वास और शून्यता आ गई है,कम से कम इस निर्णय से तो यही मालूम होता है । कभी-कभी तो एसा प्रतीत होता है कि इस आधुनिक समाज मे हर कोई यथार्थ से मुख मोडे हुए है, और यही कटु यथार्थ जब अचानक सम्मुख आ जाता है तो वो उसे पचा नही पाता । जिन रिश्तो मे सर्वथा ही प्रेम,स्नेह, और ममता का भाव होता था, वे इस आधुनिकता की चकाचौंध मे अपनी निःस्वार्थ चमक खो बैठे है ।
न्यूज चैनलो पर इस केस का पोस्टमॉर्टम देखकर कूतूहलवश मैने सम्मानीय जज द्वारा दिए गए पूरे २२० पन्ने का निर्णय पढ डाला ।
निर्णय पढने के बाद यह प्रतीत हुआ कि सम्मानीय न्यायाधीश ने इस बात को मान लिया है कि परिस्थितिया इस बात कि ओर संकेत करती है कि हत्या घर की चारदीवारी मे स्थित लोगो के अलावा अन्य कोई कर ही नही सकता । सत्य क्या है, और उस दिन क्या हुआ, ये शायद कोइ नही जानता और न ही जान पाएगा । किंतु मन तो अभी-भी यही चाहता है कि यह सत्य न हो, क्योंकि यदि सम्मानीय न्यायाधीश का  ये निर्णय सत्य है तो ये निश्चित ही यह हमारे समाज के लिए खतरे की घंटी है ।

FIGHT OF COVID - VIEW FROM A COMMONER

THE SITUATION IS GRIM AND A VIRUS HAS TAKEN US ALL INTO A SITUATION THAT WE ALL WANT TO GET OUT OF, BUT ARE ANXIOUS, RELUCTANT AND UNABLE ...