बुधवार, 25 सितंबर 2013
ढलता सूरज धीरे-धीरे ढलता है, ढल जाएगा
दशा और परिस्थिती कभी एक समान नही रहते और राजनीती मे तो प्रतिक्षण इनमे बदलाव होते रहते है । जिस व्यक्ति ने एक वक्त सारे लोगॊ के विरोध को सहकर आपका सर्मथन किया था आज उसी की जगह लेते हुए ना जाने नरेन्द्र मोदी क्या अनुभव कर रहे होंगे । जैसे ही राजनाथ सिंह ने मोदी जी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित किया तो मानो जैसे भारतीय राजनीती मे एक युग का अंत हो गया। वो युग जिसकी शुरुआत तो रथयात्रा से हुइ थी किंतु, अंत रूठने, अकेले ही अपनी आवाज बुलंद करने और अंततः बहुमत के आगे झुकने से हुआ । जिस तरह से शुरुआत नाटकीय थी, अंत भी कम नाटकीय नही था ।भीष्म की तरह सबसे वरिष्ठ होते हुए भी कुछ भी न बदल ना पाना और असहाय सा महसूस करना, ये एक अति नाटकीय परिस्थिती ही तो थी । ना जाने इस निर्णय का हमारे देश के भविष्य पर क्या परिणाम होगा किंतु एक बात तो तय है कि देश के राजनीतीक मंच की एक पीढी का अंत हो चुका है और अगली पीढी इसे आगे ले जाने के लिए अपनी जगह ले चुका है । किसी ने ठीक ही तो कहा है "ढलता सूरज धीरे-धीरे ढलता है, ढल जाएगा" |
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