सोमवार, 6 अक्तूबर 2008

विडंबना - २

पिछले दिनों कुछ आवश्यक कार्य से मुझे इलाहाबाद जाना पड़ा , वहा पर रात को देरी से पहुँचने की वजह से मुझे कुछ घंटे प्लेटफोर्म पर ही बिताने पड़े , इस पोस्ट को मैने डायरी में तो वही बैठे-बैठे ही लिखा किंतु आपके समक्ष अब प्रस्तुत कर रहा हूँ ।
रात्रि के करीब दो बजे मेरी ट्रेन इलाहबाद स्टेशन पर पहुंची , भूखा होने की वजह से मैं किसी अच्छे होटल की तलाश में स्टेशन से बाहर निकला तो एक डिसेंट होटल मिला अन्दर जाकर मैंने रोटी जो कि गर्मागर्म तंदूरी से निकल रही थी और एक सब्जी आर्डर की । खाना खाते हुए मेरी दृष्टि होटल की दीवार पर लिखे हुए संदेश पर गई जहा बड़े अक्षरो में लिखा था "धुम्रपान निषेध", "शराब पीना मना हैं " । खैर खाना खाते हुए ही जब मेरी दृष्टि मेरे दाई ओर स्थित टेबल पर गई तो मैंने देखा की वहा पर शराब पी जा रही थी और वेटर उन्हें बाकायदा चखना भी मुहैया करा रहा था । मैंने मेरे टेबल पर आए हुए वेटर से जब पुछा तो उसने मुझे बताया की वे लोग ट्रक ड्राईवर हैं और नियमित ग्राहक हैं इसलिए उन्हें ये सुविधा प्राप्त हैं।
हमारे देशवासियॊं में ये एक बात हैं की हम उन लोगो के प्रति जो की नियमित हमारे संपर्क में आते हैं और जिनसे हमारा तनिक भी लगाव होता है हम उन्हें विशेष सुविधाये मुहैया कराने में पीछे नही हटते और कभी - कभी तो कुछ महीनो की जान-पहचान में ही हम लोगो पर पूर्ण रुप से विश्वास कर लेते है,इस विश्वास को पक्का होने मे कम समय लगता है जब संबधित व्यक्ति से हमारा कोइ व्यवसायिक फ़ायदा जुडा हो,पूर्ण रूप से उनके बारे में जाने बिना ये धारणा बना लेते हैं की वे लिए हम जाने अनजाने उन्हें कुछ न कुछ विशेष सुविधाए प्रदान करते हैं ।वर्तमान समय मे जब सुरक्षा की दृष्टी से हम एक नाजुक मोड पर है हमें हमारी इस पुरानी आदत को बदलना होगा ।
हमेंशा सतर्क रहे और किसी भी व्यक्ति के उपर आसानी से विश्वास न करे इसी मे समाज और देश की भलाई है और इसकी शुरवात हम उपर लिखे हुए छोटे उदाहरण से कर सकते हैं अपने नियमित ग्राहक को भी नियम के खिलाफ़ शराब न परोसकर

1 टिप्पणी:

  1. नियम तो सबके लिए एक से होना चाहिये. चाहे तो कहीं और बैठाकर मेहमाननवाजी कर ले.

    सही कह रहे हैं.

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