मै बिहार के मिथिला - नगरी का मूल निवासी हूँ और हमारे यहाँ जितना महत्व वहाँ दिपावली को प्राप्त है, शायद उससे कुछ ज्यादा ही महत्व छ्ठ पर्व को प्राप्त है ।दो दिन तक चलने वाला यह पर्व मूलतः सूर्यदेव की अराधना का पर्व है जिसमे उगते और डूबते सूर्य की उपासना की जाती है । मै जिन दो वर्षो मे अपने मूल निवास स्थान दरभंगा मे छ्ठ पूजा के समय रहा हू उस छ्ठ पूजा की यादे आज भी मस्तिष्क मे उसी प्रकार ताजा है ।हर वर्ष इस पर्व के आने पर मुझे याद आ जाते है वो अनमोल कुछ क्षण जो मैने अपने दादा-दादी के साथ बिताए थे,क्योंकि अब वो हमारे साथ नही है । कडाके ठंड के बीच जल मे भूखे-प्यासे खडे-खडे रहकर सूर्यदेव की उपासना करना, उनसे अपने संतान के लिये लंबी उम्र की कामना करना,सोच कर ही मेरे रोंगटे खडे हो जाते है । इस पर्व को विधिपूर्वक करना अत्यंत ही कठिन है । और इसके साथ ही याद आता है "ठेंकुआ:" (मैदे को तल कर बनाई जानेवाली मिठाई) और "भुसुआ" (चावल के आटे से बननेवाले लड्डू ) का अलग से लगने वाले स्वाद !!
मुंबई शहर मे तो वो रोमांच नही है और "राज" नीती के ठेकेदारो ने इस पर्व के मनाने को भी एक मुद्दा बना दिया है । पिछले कुछ वर्ष से मै शाम के समय जूहू बीच पर जाया करता हूँ था पर भीड अत्याधिक होने की वजह से वहाँ ज्यादा देर रुक नहीं पाता पर "लिट्टी-चोखा" के स्टाल से उसका आनंद तो ले ही लिया करता हूँ ।
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