बुधवार, 19 नवंबर 2008

सामाजिक विषमताओ का भारत

हमारा देश सामाजिक विषमताओ से भरा हुआ है, नही जाति,धर्म और लिंग की विषमता ही नही एक और विषमता भी है । यहाँ पर क्रिकेट टीम का कप्तान तो अपने राज्य का सबसे ज्यादा टैक्स पेयर है और करोडो कमाता है, किंतु शायद फुटबॉल और हॉकी टीम के कप्तान लाखो मे ही झूलते है । सरकारी स्कूल का आलसी (अधिकतर,कुछ को छोडकर) शिक्षक एक मोटी तनख्वाह, और रिटायर होने के बाद अच्छी पेंशन पाता है किंतु प्राइवेट विद्यालयो मेहनत करने वाले शिक्षक कम अपनी किस्मत को कोसते है,फिल्मे हिट होती है तो निर्माता - निर्देशक और स्टार कमाते है पर लगातार मेहनत करने वाले जूनियर आर्टिस्ट और टेक्निशियन दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से जुटा पाते है।आइटी मे हम आगे तो निकल गए है किंतु हमारी सरकार अपनी योजनाओ के माध्यम से अभी भी जरूरतमंदो तक पहुँच नही पाती । उसने किसानो के कर्ज तो माफ कर दिये किंतु इस से बैंको का नुकसान ही हुआ और कुछ सशक्त किसानो के कर्ज माफ हो गए ।सामाजिक स्तर पर हम आज भी इतने पिछडे है कि विदेशी हमे "तीसरी दुनिया" कहने से नही चूकते,भले ही उनके बैंक बैंलेंस का एक बडा हिस्सा हमारे देश से जाता हो ।इस विषय पर गंभीर विचार करने की आवश्यकता है न सिर्फ हमारे नेताओ बल्कि समाज को, हमे और आपको, हम सभी भारतवासियो को कि कैसे इस विषमता को कम किया जाए जिससे कि किसान आत्महत्या ना करे, मध्यमवर्गीय छात्र और उनके माँ-बाप अपने भी डॉक्टर बनने की सोच सके, हर कोइ सिर्फ सरकारी नौकरी की चाह न रखे , जो जहाँ चाहे जा सके, रह सके अपना जीवन - य़ापन कर सके । राष्ट्रीय स्तर पर आगे बढने के लिए सामाजिक सम रसता होना अंत्यंत आवश्यक है ।इस वक्त सारी दुनिया एक जबर्दस्त मंदी के दौर से गुजर रही है और हमारा देश भी इससे अछूता नही है । नौकरियो मे कटौती हो रही है,शेयर बाजार की हालत खराब है एसे मे यदि इनका मुकाबला कर पाने मे हम सक्षम न हो तो शायद २०२० तक सुपरपावर बनने का हमारा सपना सपना ही रह जाएगा ।

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