"मुंबई पर एक बार फिर आतंकी हमला और मुंबई ने इसका सामना डट कर किया" "मुंबई का जज्बा एक बार फिर दिखा " ये वाक्य न्यूज चैनलो पर एंकरो ने पिछले तीन दिनो मे न जाने कितनी ही बार गला फाड कर बोले होंगे । किंतु दुर्भाग्यवश ये सच नही है सच तो कुछ और है, सच तो ये है कि ये जज्बा हमारी मजबूरी है और सच ये भी है कि हमे एसे हमलो की आदत सी हो गई है । अपना पेट पालने के लिये हम निकल पडते है उन्ही सडको पर, उन्ही बसो-ट्रेनो मे,उन्ही जगहो पर जहाँ कुछ घंटो पहले हमारे जैसे ही कई बेगुनाह लोगो ने अपनी जान गँवाई होती है,जब तक हम खुशकिस्मत है तब तक बचे हुए है, पर किसी भी वक्त हमारा समय आ सकता है ।एसे हमलो के बाद कुछ वक्त बीत जाता है और हम अपने जज्बे को भूलने लगते है तो फिर ये आतंकवादी आ जाते है नए तरीको के साथ हमारे जज्बे को एक बार फिर से जगाने ।ये कडवा है, किंतु यही सच भी है । पिछले तीन दिनो मे लगातार समाचार चैनल देखने के बाद, कुच नामी एंटी टेरर एक्सपर्टस के विचार सुनने के बाद मेरे विचार मे पाकिस्तान जो कि आतंकवाद के विश्व की राजधानी बनकर उभरा है की इस स्थिती के पीछे दो मुख्य कारण है , राष्ट्र पर कब्जे के लिये विभिन्न कबीलो का आपस मे टकराव और सेना और राजनीतीज्ञो मे सत्ता के लिये टकराव और वैचारिक मतभेद । कई बार तो राजनीतीक आकाओ को भी पता नही होता कि सेना क्या कर रही है और कारगिल जैसी घटनाए हो जाती है । कुल मिलाकर देश मे एकजुटता की कमी है ।किंतु ये बात हमारे राजनेताओ को समझ नही आती, वो हमे हर वक्त बाँटते रहते है ताकि उनके वोट बैंक सलामत रहे है । कभी धर्म के आधार पर , कभी जाति के आधार पर तो कभी हमे भाषा के आधार पर बाँटा जाता है । और इन नेताओ के बहकावे मे आकर हम आतंकवादियो के ये संदेश दे रहे है कि आओ हमे अपना निशान बनाओ हम तो स्वंय ही एक-दूसरे की जान लेने के लिये आमादा है,तुम आकर हमारा काम थोडा और आसान कर दो । अब समय आ गया है कि आम लोग एसे नेताओ के बहकावे मे न आए और एकजुट हो कर कुछ एसा करे कि एसे आतंकी हमारी तरफ आना तो दूर देख भी न सके । यदि हमे इनसे मुकाबला करना हो तो न केवल देश को बल्कि सारे विश्व को एकजुट होना पडेगा किंतु यदि शुरवात तो देश से ही करना पडेगा ।
आप करे शुरुवात हम करे शुरुवात तभी तो हम शायद आने वाली पीढीयो को एक सुरक्षित भविष्य की गारंटी दे सकते है ।
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