जीवन के २८ मे स २२ वर्ष मुंबई शहर मे गुजरि गेल किंतु आसपास मैथिल समाज भेला के वजह स मैथिली बाज आ समझ के सामर्थ्य भेल । सतत फेसबुक पर मैथिली भाषा के प्रचार आ प्रसार कर लेल विभिन्न संस्था द्वारा जे प्रयास भ रहल अछि से देख क प्रसन्न्ता होयत अछि । एहि पवित्र कार्य मे अपन तुच्छ योगदान के रुप में आब स किछु पोस्ट अपन ब्लॉग पर मैथिली भाषा मे सेहो लिखनाय शुरु क रहल छी कियैक त अपन मातृभाषा के लेल जे भ सकत से करनाय हम अपन कर्तव्य बुझय छी । किंतु सतत हमरा इ चिंता होयत रहय जे नव पीढी मैथिली स दूर जा रहल अछि। जखन अपन मैथिल समाज के विभिन्न शहर में रहवाला ५ स २० वर्ष के आयुवाला नेना-भुटका/युवा सब स भेट होइया त ओइमे स अधिकांश केवल मैथिली सुनि क बुझ जैत छथि किंतु बाजि नै पाबय छथि ।इ सत्य अछि और एकर कारण त हमरा याह बुझैत अछि जे जखन बच्चा अंग्रेजी मे "जॉनी-जॉनी" सुनबैत अछि त पालक प्रसन्न भ जैत छथि किंतु बच्चा सबके अपन मातृभाषा के सिखाब के कोनो प्रयास नै करैत छथि तखन कोना मैथिली भाषा अक्षुण्ण रहत ? कि मैथिली केवल दरभंगा - मधुबनी में रहवाला लोके तक सीमीत रहि जेते मुंबई,दिल्ली,कोलकाता, हैदराबाद आ बंगलुरु में रहवाला मैथिल नेना-भुटका/युवा मैथिली बिसरि जेता ? प्रश्न गंभीर आ विचारणीय छै । हम चूंकि मुंबई में रहलो त हमरा मराठी त बड नीक बाज आबयाय, कारण समाज मराठी छल, लेकिन आसपास मैथिली समाज सेहो छल, यदि संभवतः इ नै रहैत त शायद मैथिली बाज नै आबैत । अतः इ स्पष्ट छै जे समाज भाषा के प्रचार के लेल एगो महत्वपूर्ण कारक अछि । सामाजिक कार्यक्रम चाहे ओ सार्वजनिक होइ जेना कि अष्टजाम,सामूहिक पूजा,साहित्यिक कार्यक्रम,कवि सम्मेलन या निजी कार्यक्रम आदि में नेना-भुटका/युवा के सहभागिता सदैव कम रहय छै ।कारण माता-पिता अपन बालक-बालिका के एहन कोनो आयोजन मे ल जेनाय कष्टप्रद बुझैत छथि, और अहिके लेल पूर्ण रुप स जिम्मेदार छथि । एहन सामाजिक कार्यक्रम में यदि नेना-भुटका/युवा सहभागी हेता और अनेक लोक के अपन भाषा बाजैत सुनथिन त निश्चित रुप स अपन भाषा में हुनकर रुचि बढतैन ।इ त हम एकटा उदाहरण देलौ है, एहिना यदि प्रत्येक माय-बाप केवल अपना बालक-बालिका के अपन मातृभाषा सिखा देता ताहि स भाषा प्रचलित आ बढैत रहत ।
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