उत्तर भारतीय संघ की शाखा बोरीवली के बैनर तले और श्री मनोज चतुर्वेदी के नेतृत्व में विगत सात वर्षो से आयोजित की जा रही धार्मिक यात्रा में सहभागी होने का अवसर इस वर्ष मुझे भी मिला | इस वर्ष तीन दिनों की यह यात्रा १४ से १६ अगस्त के बीच संपन्न हुई | इन तीन दिनों में यात्रा में सहभागी पचास यत्रियो ने महाराष्ट्र के परली वैजनाथ, औंढा नागनाथ और घृष्णॆश्वऱ महादेव के साथ-साथ शिर्डी साईंबाबा के दर्शन का भी लाभ लिया | इन तीर्थ स्थानों के आलावा हम लोग दर्शनीय और यूनेस्को द्वारा भारत के विश्व धरोहर स्थलों में शामिल प्रसिद्ध "एलोरा" की गुफाओ में भी गए | इस यात्रा से सबंधित सारे चित्रों के लिए यहाँ क्लिक करे |
इस यात्रा से जुडी कुछ और बातें ब्लॉग पर आगे भी लिखूंगा |
शनिवार, 28 अगस्त 2010
शुक्रवार, 25 जून 2010
रावण
"रावण" फिल्म देखते समय एक ख्याल जो मेरे मन में रह-रह कर आ रहा था की हमारे अपने देश में इतने खूबसूरत लोकेशनो के होते हुए निर्माता विदेशो का रुख क्यों करते है | फिर ख्याल आया कि शूटिंग करने के लिए सरकारी दफ्तरों से परमिशन लेना, शायद शूटिंग करने से कठिन होगा तो इसमें निर्माताओ को क्यों दोष दे | दुर्भाग्यवश अभिषेक के शानदार अभिनय के अलावा फिल्म के खूबसूरत दृश्य ही है जो दर्शक को बांध कर रख पाने में सफल होते हैं |ऐश्वर्या हमेशा कि तरह अपने अभिनय प्रभावशाली है किन्तु उनके रोले में विविधता नहीं है और पूरी फिल्म में ज्यादातर समय या तो वो किसी खूटे से या किसी पेड़ से बंधी हुई है या "बीरा" कि कैद से भागने की कोशिश में है | पहले हाल्फ में फिल्म काफी बोरिंग लगती है|विक्रम जो कि एक एस.पी. के किरदार में है, अपनी पत्नी नंदिनी (ऐश्वर्या) को खोजने के लिए जंगलो कि खाक छान रहा है, इस हिस्से में दर्शक पूर्वानुमान लगा लेता हैं कि अगले दृश्य में क्या होगा, जिससे बोरियत बढ़ जाती हैं| किन्तु दुसरे हाल्फ में फिल्म तब प्रभावशील होती है, जब बीरा के रावण बनने कि कहानी दिखाई जाती हैं | फिल्म के अंत में एक अत्यंत ही नाटकीय क्लाइमेक्स है, जो कि दर्शक को सोचने पर मजबूर कर देता है कि असली रावण कौन है | वैसे तो ये फिल्म रामायण पर आधारित है किन्तु,निर्देशक मणिरत्नम ने इसमें अपनी सोच को जोड़ा है और फिल्म देखकर दर्शक भी कुछ सोचने के लिए जरूर मजबूर होगा किन्तु छोटे विषय को बड़ा करने कारण फिल्म का स्क्रीनप्ले कुछ कमजोर हो गया है | रवि किशन, विक्रम और गोविंदा ने अपने किरदारों को बखूबी निभाया है, एक छोटे किन्तु महत्वपूर्ण किरदार में तेजस्विनी कोल्हापुरे दर्शक का ध्यान आकर्षित कर पाने में सफल हुई हैं | मेरे हिसाब से फिल्म एक नेत्रसुखद अनुभव हैं और एक बार तो देखी जा सकती हैं |
सोमवार, 19 अप्रैल 2010
उत्तर भारतीय संघ के साठ वर्ष पूर्ण
रविवार, १८ तारीख की शाम मुंबई के प्रसिद्ध षन्मुखानन्द हॉल में उत्तर भारतीय संघ की स्थापना के साठ वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में रखे गए कार्यक्रम में बीती कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण थे विख्यात भोजपुरी गायक और अभिनेता मनोज तिवारी और उनके साथी राजनितिक विरोधाभास के बावजूद दोनों मुख्य राष्ट्रीय पार्टियो के नेता कार्यक्रम में अलग-अलग समय मौजूद रहे, बीजेपी के सरदार तारा सिंह जहाँ कार्यक्रम के शुरुआत में उपस्थित थे वही कांग्रेस के नारायण राणे,एकनाथ गायकवाड, कृपाशंकर सिंह और NCP के छगन भुजबल ने कार्यक्रम अंत में आकर अपने विचार रखे, कांग्रेस के नसीम खान ने भी आक्रामक और जोश से भरे अपने सन्देश में कथनी और करनी में भेद न होने देने की बात कही, देर से ही सही NCP के नरेन्द्र वर्मा भी पहुचें सारे राजनेताओ ने हमेशा की तरह ही राजनितिक बातें की और मुंबई सबकी हैं इस वाक्य का बार बार उपयोग करके उत्तर भारतीय वोट बैंक को अपने पक्ष में रखने की कोशिश करते रहे उत्तर भारतीय संघ के अध्यक्ष श्री आर एन सिंह ने सीधे तौर पर मंच पर उपस्थित मंत्रीयो राणे और भुजबल से भूमि की मांग की जिससे की संघ अपने भविष्य की योजनाओ जैसे उच्च शिक्षा के महाविद्यालय अदि को मूर्त रूप दे सके, जिस पर हर संभव मदद करने का आश्वासन दोनों ही मंत्रियो ने किया, अब देखना हैं की ये कब तक साकार होता है उत्तर भारतीय संघ ने उत्तर भारतीय रत्न के रूप में वार्षिक पुरस्कारों की शुरुवात की जिसके पहले पात्र निर्देशक गजेन्द्र सिंह और अभिनेत्री श्वेता तिवारी बने उत्तर भारतीय समाज तमाम विरोधाभासो के बावजूद निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर हैं इसका उदहारण इस कार्यक्रम में देखने को मिला किन्तु अभी भी कुछ आपसी मतभेद इस समाज को खोखला कर रहे है ऐसा भी प्रतीत हुआ समारोह में पूर्व पुलिस कमिश्नर श्री एम् एन सिंह ने भी शिरकत की इस कार्यक्रम में जबरदस्त समां उस वक्ता बंधा जब मनोज तिवारी ने देवी माँ का मशहूर गीत "बाड़ी शेर पे सवार" गया, इस गीत पर मिले श्रोताओ के प्रतिसाद से मनोज तिवारी भी भाव-विभोर हो गए कार्यक्रम के अंत सुर संग्राम विजेता गायक मोहन राठौर दर्शको को बाँध कर रख पाने में सफल नहीं हो पाए, बीच बीच में हास्य कलाकार सुरेश सावरा ने भी दर्शको का भरपूर मनोरंजन किया कुल मिलकर ये शाम अच्छी ही बीती ऐसा मैं कह सकूँगा
गुरुवार, 1 अप्रैल 2010
रियल लाइफ की "वीर-जारा"
सानिया और शोएब ने शादी करने का फैसला किया है, ये वही शोएब है जिन्हें उनके देश के क्रिकेट बोर्ड ने टीम की हार का जिम्मेदार मानते हुए है एक साल के लिए बैन कर दिया है और ये वही सानिया है जो पिछले कुछ दिनों से अपनी सफलता के लिए कम और अपनी असफलताओ और ग्लैमर के लिए ज्यादा चर्चित रही है सेलेब्रिटीज के पल-पल की खबर रखने वाली मीडिया को भी इस क्रोस बोर्डर प्यार की भनक तक नहीं लगी ये आश्चर्य की बात है, किन्तु इससे ये भी साबित होता है की ये कितने सफल और पेशेवर खिलाडी है और अपना मन जिस खेल में लगाते हैं उसे बड़ी सफाई से खेलते हैं चूँकि इनका ध्यान अपने "प्यार" के खेल में लगा हुआ था इसलिए क्रिकेट और टेनिस के मैदान पर ये अपने जलवे कैसे दिखा पाते शोएब तो अपने खेल में इस लगन से खेले कि उनके देश के बोर्ड ने उन्हें पुरस्कारस्वरूप एक साल के लिए इस खेल को खेलने की पूरी आजादी दे दी और सानिया भी अपने फेवरेट देश ऑस्ट्रेलिया में कुछ ख़ास कमाल नहीं दिखा पाई, और इस खेल में मग्न होकर जब अपने भविष्य के गृहशहर में टेनिस खेलने गयी तो चोट खा बैठी, दिल पर चोट तो लगी ही थी अब शारीर भी चोटिल हो गया चोटिल होकर आप टेनिस तो नहीं खेल सकते किन्तु "प्यार" के खेल को खेलने के लिए तो ऐसी बंदिश नहीं हैं अपनी शादी की घोषणा करने के लिए जब उन्होंने ने प्रेस को बुलाया तो उनसे पुछा गया की भारत-पाक के मैच में वो किसे सपोर्ट करेंगी तो उन्होंने कहा की मैं अपने पति और अपने देश दोनों को सपोर्ट करूंगी, सही भी है पाकिस्तान और उसकी क्रिकेट टीम के हालात ऐसे है की वहा पर कोई देश की टीम नहीं मानो ग्यारह अलग-अलग लोग खेल रहे हो तो पाकिस्तान देश को सपोर्ट करने जैसी बात तो आती ही नहीं सही मायनो में ये जोड़ी हैं रियल लाइफ की "वीर-जारा"
गुरुवार, 25 मार्च 2010
"लाहौर" - एक अच्छी और सच्ची फिल्म
"लाहौर" - एक अच्छी और सच्ची फिल्म
"खेल सिर्फ खेल हैं और उसमे हार-जीत का महत्व सिर्फ हार और जीत से हैं, नकि मुल्क कि प्रतिष्ठा और सम्मान से" यही सन्देश देती हैं फिल्म "लाहौर" दो भाइयों कि कहानी और भारत पाक रिश्तो को किक-बोक्सिंग के खेल के साथ जोड़ कर "लाहौर" फिल्म का ताना बाना बुना गया है वीरेन्द्र सिंह (अनहद) और धीरेन्द्र सिंह (सुशांत सिंह ) दो भाइयों के किरदार में हैं बड़ा भाई धीरेन्द्र जहाँ एक सफल किक-बोक्सर हैं वही छोटा भाई वीरेन्द्र एक उभरता हुआ क्रिकेटर हैं
एशियन चैम्पियनशिप में फ़ाइनल मुकाबले जब धीरेन्द्र का मुकाबला पाकिस्तानी मुक्केबाज नूर मोहम्मद(मुकेश ऋषि) से होता हैं, तो अंको के आधार पर लगभग पराजित हो चुके नूर अपने कोच (सब्यास्ची चक्रवर्ती) के बहकावे में आकर धीरेन्द्र पर पीछे से ऐसा वार करता हैं कि उसकी मौत हो जाती हैं
बड़े भाई कि मौत से पहले ही आहत छोटे भाई वीरेन्द्र को जब ये पता चलता हैं कि दोनों देशो के राजनितिक दबाव के चलते उसके भाई कि मौत को एक दुर्घटना करार दे दिया गया हैं तो वह अपने क्रिकेट कैर्रिएर को दाव पर लगा कर अपने भाई के सपने को साकार करने और उसका पक्ष रखने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हो जाता है और पाकिस्तान के लाहौर में होने वाले गुडविल बोक्सिंग मुकाबले में भाग लेने के लिए कोच एस के राव (फारुक शेख) से गुजारिश करता है इसके बाद फिल्म के जबरदस्त क्लाइमैक्स में क्या होता हैं ये जानने के लिए ये फिल्म देखना ही उचित होगा फिल्म में बोक्सिंग के दृश्य काफी सटीक है और कुछेक हिस्सों को छोड़ दिया जाये तो बाकी समय फिल्म दर्शक को बाँध कर रख पाने में सफल होती हैं कोच की भूमिका में फारुक शेख जबरदस्त छाप छोड़ते हैं, खासकर हैदराबादी लहजे में कहे गए उनके संवाद काफी प्रभावित करते है पाकिस्तानी मनोचिकित्सक की भूमिका में श्रद्धा दास (इदा), वीरेन्द्र और धीरेन्द्र की माँ के किरदार में नफीसा अली (अम्मा) और धीरेन्द्र की प्रेमिका की भूमिका में श्रद्धा निगम (नीला) के पास ज्यादा समय नहीं है फिर भी ये अपने किरदारों के साथ न्याय कर पाने में सफल होती है सुशांत सिंह हमेशा की तरह अपने काम में प्रभावशाली है लेकिन किन्तु अनुभव की कमी आनहद के काम में साफ़ झलकती हैं ख़ास कर भावात्मक दृश्यों में वे अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाते कुल मिलाकर यह फिल्म दर्शको को निराश नहीं करेगी किन्तु सिनेमाघरों में कम शो होने, युवाओ में अति चर्चित फिल्म "लव, सेक्स और धोखा" के साथ रिलीज़ और "IPL” की वजह से शायद ज्यादा लोग ये फिल्म नहीं देख पाएंगे
"खेल सिर्फ खेल हैं और उसमे हार-जीत का महत्व सिर्फ हार और जीत से हैं, नकि मुल्क कि प्रतिष्ठा और सम्मान से" यही सन्देश देती हैं फिल्म "लाहौर" दो भाइयों कि कहानी और भारत पाक रिश्तो को किक-बोक्सिंग के खेल के साथ जोड़ कर "लाहौर" फिल्म का ताना बाना बुना गया है वीरेन्द्र सिंह (अनहद) और धीरेन्द्र सिंह (सुशांत सिंह ) दो भाइयों के किरदार में हैं बड़ा भाई धीरेन्द्र जहाँ एक सफल किक-बोक्सर हैं वही छोटा भाई वीरेन्द्र एक उभरता हुआ क्रिकेटर हैं
एशियन चैम्पियनशिप में फ़ाइनल मुकाबले जब धीरेन्द्र का मुकाबला पाकिस्तानी मुक्केबाज नूर मोहम्मद(मुकेश ऋषि) से होता हैं, तो अंको के आधार पर लगभग पराजित हो चुके नूर अपने कोच (सब्यास्ची चक्रवर्ती) के बहकावे में आकर धीरेन्द्र पर पीछे से ऐसा वार करता हैं कि उसकी मौत हो जाती हैं
बड़े भाई कि मौत से पहले ही आहत छोटे भाई वीरेन्द्र को जब ये पता चलता हैं कि दोनों देशो के राजनितिक दबाव के चलते उसके भाई कि मौत को एक दुर्घटना करार दे दिया गया हैं तो वह अपने क्रिकेट कैर्रिएर को दाव पर लगा कर अपने भाई के सपने को साकार करने और उसका पक्ष रखने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हो जाता है और पाकिस्तान के लाहौर में होने वाले गुडविल बोक्सिंग मुकाबले में भाग लेने के लिए कोच एस के राव (फारुक शेख) से गुजारिश करता है इसके बाद फिल्म के जबरदस्त क्लाइमैक्स में क्या होता हैं ये जानने के लिए ये फिल्म देखना ही उचित होगा फिल्म में बोक्सिंग के दृश्य काफी सटीक है और कुछेक हिस्सों को छोड़ दिया जाये तो बाकी समय फिल्म दर्शक को बाँध कर रख पाने में सफल होती हैं कोच की भूमिका में फारुक शेख जबरदस्त छाप छोड़ते हैं, खासकर हैदराबादी लहजे में कहे गए उनके संवाद काफी प्रभावित करते है पाकिस्तानी मनोचिकित्सक की भूमिका में श्रद्धा दास (इदा), वीरेन्द्र और धीरेन्द्र की माँ के किरदार में नफीसा अली (अम्मा) और धीरेन्द्र की प्रेमिका की भूमिका में श्रद्धा निगम (नीला) के पास ज्यादा समय नहीं है फिर भी ये अपने किरदारों के साथ न्याय कर पाने में सफल होती है सुशांत सिंह हमेशा की तरह अपने काम में प्रभावशाली है लेकिन किन्तु अनुभव की कमी आनहद के काम में साफ़ झलकती हैं ख़ास कर भावात्मक दृश्यों में वे अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाते कुल मिलाकर यह फिल्म दर्शको को निराश नहीं करेगी किन्तु सिनेमाघरों में कम शो होने, युवाओ में अति चर्चित फिल्म "लव, सेक्स और धोखा" के साथ रिलीज़ और "IPL” की वजह से शायद ज्यादा लोग ये फिल्म नहीं देख पाएंगे
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