शुक्रवार, 25 जून 2010
रावण
"रावण" फिल्म देखते समय एक ख्याल जो मेरे मन में रह-रह कर आ रहा था की हमारे अपने देश में इतने खूबसूरत लोकेशनो के होते हुए निर्माता विदेशो का रुख क्यों करते है | फिर ख्याल आया कि शूटिंग करने के लिए सरकारी दफ्तरों से परमिशन लेना, शायद शूटिंग करने से कठिन होगा तो इसमें निर्माताओ को क्यों दोष दे | दुर्भाग्यवश अभिषेक के शानदार अभिनय के अलावा फिल्म के खूबसूरत दृश्य ही है जो दर्शक को बांध कर रख पाने में सफल होते हैं |ऐश्वर्या हमेशा कि तरह अपने अभिनय प्रभावशाली है किन्तु उनके रोले में विविधता नहीं है और पूरी फिल्म में ज्यादातर समय या तो वो किसी खूटे से या किसी पेड़ से बंधी हुई है या "बीरा" कि कैद से भागने की कोशिश में है | पहले हाल्फ में फिल्म काफी बोरिंग लगती है|विक्रम जो कि एक एस.पी. के किरदार में है, अपनी पत्नी नंदिनी (ऐश्वर्या) को खोजने के लिए जंगलो कि खाक छान रहा है, इस हिस्से में दर्शक पूर्वानुमान लगा लेता हैं कि अगले दृश्य में क्या होगा, जिससे बोरियत बढ़ जाती हैं| किन्तु दुसरे हाल्फ में फिल्म तब प्रभावशील होती है, जब बीरा के रावण बनने कि कहानी दिखाई जाती हैं | फिल्म के अंत में एक अत्यंत ही नाटकीय क्लाइमेक्स है, जो कि दर्शक को सोचने पर मजबूर कर देता है कि असली रावण कौन है | वैसे तो ये फिल्म रामायण पर आधारित है किन्तु,निर्देशक मणिरत्नम ने इसमें अपनी सोच को जोड़ा है और फिल्म देखकर दर्शक भी कुछ सोचने के लिए जरूर मजबूर होगा किन्तु छोटे विषय को बड़ा करने कारण फिल्म का स्क्रीनप्ले कुछ कमजोर हो गया है | रवि किशन, विक्रम और गोविंदा ने अपने किरदारों को बखूबी निभाया है, एक छोटे किन्तु महत्वपूर्ण किरदार में तेजस्विनी कोल्हापुरे दर्शक का ध्यान आकर्षित कर पाने में सफल हुई हैं | मेरे हिसाब से फिल्म एक नेत्रसुखद अनुभव हैं और एक बार तो देखी जा सकती हैं |
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