रविवार, 14 सितंबर 2008

गणेशोत्सव और राजनीती

आज गणेश विसर्जन हो गया है , ग्यारह दिनों का उत्सव समाप्त हो गया और रात के इस वक्त कुछ अप्रिय नही घटा तो शांतिपूर्वक ही बीत गया । कल दिल्ली के हादसों की वजह से सुरक्षा के इंतजामात काफी कड़े किए गए थे किंतु जब मैं अपने इलाके बोरीवली पश्चिम के गोराई बीच की ओर जा रहा था लोगो की जबरदस्त भीड़ के बीच असहाय से लग रहे पुलिसवालों को देख कर लग रहा था जैसे कुछ भी हो जाए इनके लिए किसी भी चीज को काबू में कर पाना नामुमकिन होगा । चारो तरफ़ हर ओर अलग - अलग राजनितिक दलों के पंडाल जो की गणेश भक्तो के स्वागत और उनके द्वारा अपने वोटबैंक को मजबूत करने की कोशिश कर रहे थे । हर ओर अलग - अलग लाउड - स्पीकरों द्वारा अपने दल का और अपने प्रमुखों का नाम ले लेकर जनता के दिलो में उनकी जगह बनाने की कोशिश कर रहे थे । हाँ एक खास बात और थी इन राजनितिक मंचो में , कुछ मंचो ने खास तौर पर डीजे का इंतजाम भी कर रखा था और उनमे से एक मनसे का भी मंच था जिस के लाउड - स्पीकर से केवल हिन्दी गाने ही सुनने को मिल रहे थे । शिवसेना के मंचो पर कम चहल पहल देखकर ऐसा लग रह था जैसे इस वर्ष उनकी आधी ताकत जो मनसे ने छीन ली , और जो आधी बची हुई थी वो भी धीरे - धीरे कम होती जा रही हैं । आजादी पाने के लिए, लोगो में जागरूकता लाने के लिए और उन्हें एकजुट कर एक मंच पर लाने के लिए जिस त्यौहार की शुरुवात लोकमान्य तिलक ने की थी वो अब एक वोट पाने के लिए जरिया बन गया हैं उत्सव के द्वारा जनता को आकर्षित करने के लिए प्रचार प्रसार किया जा रहा हैं और पैसे पानी की तरह बहाए जा रहे हैं । अगर इश्वर - कृपा से प्राप्त इस धन का ज्यादा हिस्सा सामाजिक कार्यो में लगाया जाए तो बेहतर होगा और इस बिहार बाढ़ - पीडितो को इसकी सबसे ज्यादा जरुरत हैं ।

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