
पिछले पन्द्रह वर्षो से मुंबई में रह रहा हूँ पर कभी पंडाल में जाकर लालबाग के राजा का दर्शन नही कर पाया हूँ पिछले शनिवार की रात हिम्मत करके पंहुचा कुछ दोस्तों के साथ किंतु रात भर उस भीड़ में यहाँ - वहा करने के पश्चात जब करीब सुबह पाँच बजे ऐसा लगा की अगले दिन रात तक भी दर्शन होने की सम्भावना नही हैं तो हारकर हम सब लौट आए । ऐसा लगता हैं मानो राजा हमें अभी अपने दर्शन का लाभ नही देना चाहते अगले दिन जब मैंने अख़बार पढ़ा तो पता लगा की शनिवार की रात को रिकॉर्ड संख्या में लोग लालबाग पहुंचे थे । रात के दो बजे सडको पर ऐसी चहल - पहल थी मानो जैसे शाम के सात बजे हों । जब पानी की बोतल लेने के लिए हम एक दुकान पर पहुंचे तो उन्होंने भी ये माना की आज की भीड़ उनकी अपेक्षाओ से भी अधिक हैं , दस रुपये की पानी की बोतल के लिए पन्द्रह रुपये लेते हुए उन्होंने जवाब दिया । उनके जवाब में सुबह दुकान देरी से खोलने की खीज भी थी खैर जब हम लौट रहे थे तो भीड़ के शोर से असमय ही नींद से जग गए लोग खिड़कियों झांकते हुए दिखाई दे रहे थे वो लालबाग के राजा का उतना ही सम्मान करते होंगे किंतु दस दिनों तक तो शायद उन्हें सोने में दिक्कत तो होती ही होगी ।
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