साँझ ढलते ही घर की ओर रुख करते हैं हम ,
मौका मिले तो कुछ इधर उधर तांक - झांक करते है हम
कभी इस मॉल में कभी उस स्टोर पे रुकते है हम
जेबे हलकी होती हैं शामो को ही ।
मन मचलता हैं चाट की दुकानों पर
पिज्जा - बर्गर देख मुँह में पानी आता हैं
जाम छलकाने को जी चाहता हैं भीगी शामो में
आज कर लेते हैं बाहर हीं डिनर मन में यही ख्याल आता हैं
नई फ़िल्म के हीरो की ड्रेस पसंद आती हैं
स्टाइल हमारा भी कुछ नया हो यही सोचते हैं
स्टोर्स में ऑफर तो कई हैं खीच ले जाती हैं ये बात हमें
नित नए ढंग से संवरने का ही ख्वाब हम देखते हैं .
हर शुक्रवार को नई फ़िल्म आती हैं
शनिवार के शाम का प्रोग्राम बनवाती हैं
सन्डे तो छुट्टी का दिन हैं इसलिए शनिवार की रात फ़िल्म देखकर ही बिताते हैं .
अलसाया सा दिन हैं ये रविवार का
पर राशन तो हैं लाना हफ्ते भर का
दुकानों के चक्कर और मॉल में जाना
हो सके तो लंच बाहर ही कर आना .
ये हैं ब्यौरा हफ्ते भर जाने कब जाए गुजर
आया सोमवार लगो काम पर यही हमारी जिंदगी का सफर ।
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