गुरुवार, 15 अगस्त 2013

एक बार फिर रामभरोसे

कई दिनो के बाद जब एक बार फिर लिखने का मन हुआ तो सोचा कि क्यो न आज पंद्रह अगस्त के खास दिन ही इस सिलसिले को एक बार फिर शुरु किया जाए । माहौल चुनावी है और अगले साल ही आम चुनाव होने वाले है । नेता अपने दावे प्रस्तुत करने मे लगे है । किंतु हमारे देश की विडंबना ये है कि दो सबसे बडी राष्ट्रीय पार्टीयो का हाल एकदम उल्टा है । जहाँ एक पार्टी मे चाटुकार अपने युवराज को बिना उसकी इच्छा के ही अपना नेता बता रहे है वही दूसरी बडी पार्टी के एक नेता स्वंय को ही एक मात्र विकल्प के रुप मे प्रस्तुत कर रहे है । दोनो पार्टीयो मे परिस्थिती एकदम उल्टी है किंतु दोनो ही ओर के लोगो का मकसद एक ही है । येण केण प्रकारेण सत्ता प्राप्त करना, एक ओर जहाँ लोग चाटुकारिता कर सत्ता के केंद्र मे रहना चाहते है तो दूसरी ओर के नेता स्वंय को ही सत्ता के केंद्र मे देखना चाहते है, हालांकि वे सीधे तौर पर एसा कहने से बच रहे है । स्थानीय राजनीतीक पार्टीयो के नेताओ का अवसरवाद साफ तौर पर उनके निर्णयों मे झलक रहा है । राष्ट्रीय हितो से अधिक उन्हे अपनी स्थानीय वोट बैंको की अधिक परवाह है और उनका विरोध अथवा समर्थन रचनात्मक कम और निजी स्वार्थपरक अधिक प्रतीत होता है । इस प्रकार के माहौल मे एसा प्रतीत होता है कि हमारे देश का हाल तो अब इश्वर के हाथो मे ही है ।

FIGHT OF COVID - VIEW FROM A COMMONER

THE SITUATION IS GRIM AND A VIRUS HAS TAKEN US ALL INTO A SITUATION THAT WE ALL WANT TO GET OUT OF, BUT ARE ANXIOUS, RELUCTANT AND UNABLE ...