शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2009

कॉमनवेल्थ खेल - खेल या पिकनिक

कॉमनवेल्थ खेलो के आयोजन से हमें क्या हासिल होगा , ये तो अभी भविष्य के गर्भ में छुपा हुआ है क्या समय पर इसकी तैयारिया पूरी हो पाएँगी या एक हिन्दुस्तानी शादी की तरह आखरी वक़्त तक जैसे तैसे हम इसे पूरा कर लेंगे और क्या हम इनके जैसे तैसे आयोजन करके ओलंपिक खेलो के लिए अपनी दावेदारी मजबूत कर पाएँगे या ये सिर्फ़ कलमाडी जैसे चतुर नेताओ के लिए निजी लाभ कमाने का जरिया ही बनेगा मीडिया में इस वक़्त ये जोरदार चर्चा का विषय बना हुआ हैं किन्तु ज्यादा सोचने से पहले हमें कॉमनवेल्थ खेलो के एतिहासिक महत्व और विश्व-स्तरीय खेल प्रतियोगिताओ पर इसके परिणामो का असर आदि के बारे में जान लेना चाहिए कई आलोचक इन खेलो को पुराने मालिक और गुलामो की पिकनिक का नाम देते है जब १९३० में पहली बार इन खेलो का आयोजन कनाडा में हुआ था तो उस वक़्त इसे ब्रिटिश एम्पायर गेम्स के नाम से जाना गया,कॉमनवेल्थ यह नाम तो १९७८ में दिया गया , यहाँ एम्पायर का अर्थ तत्कालीन ब्रिटेन के औपनिवेशिक देशो से था, जिन्हें स्वंतंत्रता मिनले के बाद कॉमनवेल्थ कहा गया इन खेलो को आयोजित करने का मकसद यही था जिन देशो में ब्रिटेन ने शासन किया हैं वहा के लोगो को सांस्कृतिक और खेलो में भी ब्रितानी मूल्य थोपे जाए इस खेल के सभी नियम और परम्पराए ब्रिटेन से जुडी हुई है वैसे जब ये खेल शुरू हुए थे तो इसमें केवल ११ देशो ने हिस्सा लिया था जो की अब बढ़कर ७१ हो गयी है अब इन खेलो के परिणामो की ओलंपिक में प्रवेश के मानदंड की बात करे तो पता चलता है की सभी महाद्वीपों के कई श्रेष्ठ देशो के खिलाडियों की उपस्थिति के बावजूद इन खेलो में स्वर्ण पदक जीत कर भी ओलंपिक प्रवेश पक्का नहीं होता उदहारण के लिए हॉकी में यदि एशियन गेम्स और पण अमेरिकन गेम्स के विजेता ओलंपिक के लिए सीधे प्रवेश कर जाते हैं वही कॉमनवेल्थ खेलो में स्वर्ण जीत कर भी एसा नहीं होता

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009

महाराष्ट्र की महाभारत

इन दिनों महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावो की सरगर्मी सारी मुंबई पर छाई हुई है, और मनसे एवं शिवसेना के राज और उद्धव जो चचेरे भाई है, एक अलग तरह के कलयुगी महाभारत को मूर्त रूप दे रहे है यह महाभारत महाराष्ट्र की सत्तारुपी इन्द्रप्रस्थ को पाने के लिए है, और इसके केन्द्र में है महाराष्ट्र का मराठी समाज, जो इस असमंजस में है की इन दोनों विकल्पों में किसे चुना जाए वैसे तो ये महाभारत मनसे के जन्म से ही शुरू हो गई थी किंतु इसमे पिछले दिनों नया मोड़ तब आया जब अब तक भीस्म पितामह बने बाळ ठाकरे जो की राज ठाकरे पर सीधे हमले से बच रहे थे, ने एकाएक पार्टी मुखपत्र सामना में लिखा की राज ठाकरे मराठी समाज को टुकडो में बाँट रहे है, और इसके लिए उन्होंने उनकी तुलना जिन्ना से की हैं। अब देखना ये है की राज ठाकरे जो कि बाळ ठाकरे पर सीधे प्रहार से बचते रहे है उनके इस वार का जवाब किस प्रकार देते हैं ।

FIGHT OF COVID - VIEW FROM A COMMONER

THE SITUATION IS GRIM AND A VIRUS HAS TAKEN US ALL INTO A SITUATION THAT WE ALL WANT TO GET OUT OF, BUT ARE ANXIOUS, RELUCTANT AND UNABLE ...