शनिवार, 27 दिसंबर 2008

साल की आखरी पोस्ट

नया वर्ष दरवाजे पर दस्तक दे रहा है , समय है नए साल के लिये अपने लक्ष्य तय करने का, रिजोलूश्यन बनाने का । इस वर्ष फिटनेस पर ध्यान देना है , इस वर्ष सीए क्लियर करना है, जैसे कई विचार मन मे आने लगे है । वैसे नए साल के अपने रिजोलूश्यनस पर हम शायद साल के पहले महीने ही कायम रह पाते आते है और उसके बाद जोश ठंडा पड जाता है । किंतु पिछ्ले महीने के आतंकी हमलो के बाद हमने जिस उत्साह से आतंक का मुकाबला करने की बाते की है उसे आने वाले नए साल मे ले कर चलना अत्यंत आवश्यक है । हर किसी ने नए साल के लिये कुछ न कुछ सोचा होगा या सोच रहे होंगे मैने भी काफी चीजे सोची है जो शायद मै आपसे जो भी मेरे विचारो को पढते है अगले साल के पहले सप्ताह मे शेअर करूँगा । यदि आप कुछ सुझाव देना चाहते है तो जरूर दे ।

सोमवार, 8 दिसंबर 2008

आओ कुछ कर के दिखाए

पिछले महीने ज्यादा कुछ लिख नही पाया शायद लिखने के लिये कुछ था ही नही । हाँ ब्लॉग जगत मे मुंबई हमलो के बाद उठी लहर को एक दिशा जरूर प्रदान की । कई लोगो ने अपने विचार,सुझाव और उपाय लिखे, मैने भी शायद अपनी पिछली पोस्ट मे एसा कुछ लिखने की कोशिश की । किंतु आज उस घटना को हुए लगभग दो हफ्ते बीत जाने के बाद एसा लगता है कि हमने, सुझाव तो बहुत दिये है किंतु अपनी ओर से भी हमारी कुछ जिम्मेदारियाँ है उनके बारे मे हमे सोचना होगा और स्वंय को इतना सक्षम और जिम्मेदार बनाना होगा कि एसे हमलो को रोका जा सके और यदि भविष्य मे एसा कभी हमारे साथ हो तो न केवल हम स्वंय बच कर निकल सके बल्कि अपने साथियो की रक्षा भी कर सके । और फिर काफी सोचने के बाद मैने ये निश्चय किया कि अपने जीवन मे निम्नलिखित बदलाव लाकर मै शुरुवात करना चाहूँगा : १) किसी भी प्रकार के गैरकानूनी काम का प्रचार करना बंद करे । हमारे देश मे भ्रष्टाचार को बढाने का सबसे मुख्य कारण है "MOUTH PUBLICITY OF WRONG DOINGS" । अरे मेरा पैन कार्ड नही बन रहा है क्या करू, फलाँ एजेंट तो बिना किसी कागज के ही पैन कार्ड बना देता है तू उसके पास क्यो नही जाता, अरे मुझे सिम कार्ड चाहिए पर मेरे पास कोइ एड्रेस या पहचान का प्रूफ नही है , अरे फलाँ गली मे स्थित फलाँ दुकान से सिम कार्ड तो बिना किसी प्रूफ के ही मिल जाते है एसे वाक्य हमने कई बार स्वंय बोले और सुने होंगे । एसी चीजे आतंक के सौदागरो के लिये मददगार साबित होती है, यदि हम इन चीजो को रोक नही सकते तो कम से कम इनका प्रचार तो न करे और लोगो को,अपने मित्रो को और जिनसे भी हमारा संपंर्क हो उन सबको एसा करने से रोके ।उन्हे बताए कि ये देश की सुरक्षा के लिये कितने घातक हो सकते है,शायद इससे प्रभावित होकर लोग इन कामो को करना छोड दे । २)अपने आस-पास नए रहने आने वाले लोगो पर नजर रखे । खास कर एसे मकानो पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है जिनके मालिक आसपास न रहते हो क्योकि एसे लोग अक्सर अनजान लोगो को ही घर किराये पर देते है । नए लोगो के साथ कैसे लोग रहते है,उनसे कैसे लोग मिलने आते है और वे किस तरह के समान घर के अंदर ले जाते है इस बात का भी ध्यान रखना चाहिये । हो सके तो त्योहारो के बहाने इनके घर के अंदर जा कर देख भी लेना चाहिए । ३)एक चीज जो हम सभी के लिये अमल मे लाना आसान है वो ये कि हम ये सुनिश्चित करे कि यदि कभी हम एसे किसी हमले की बीच फँस जाए तो हम दूसरो पर बॊझ न बने बल्कि दूसरो की मदद कर पाए । इसके लिये खुद को मानसिक और शारिरिक रूप से सशक्त बनाने की जरूरत है जो कि थोडा मुश्किल जरूर है किंतु नामुमकिन नही । अपने कमॆंट्स के जरिये बताइये कि एसी और कौन से तरीके जिसे आम आदमी अपने जीवन मे इस्तेमाल कर सके,शायद अब केवल विरोध करने से नही चलेगा अपने बल्कि कुछ कर के दिखाना होगा ।

शनिवार, 29 नवंबर 2008

सुरक्षित रहना है तो मिलकर लडो,आगे बढो

"मुंबई पर एक बार फिर आतंकी हमला और मुंबई ने इसका सामना डट कर किया" "मुंबई का जज्बा एक बार फिर दिखा " ये वाक्य न्यूज चैनलो पर एंकरो ने पिछले तीन दिनो मे न जाने कितनी ही बार गला फाड कर बोले होंगे । किंतु दुर्भाग्यवश ये सच नही है सच तो कुछ और है, सच तो ये है कि ये जज्बा हमारी मजबूरी है और सच ये भी है कि हमे एसे हमलो की आदत सी हो गई है । अपना पेट पालने के लिये हम निकल पडते है उन्ही सडको पर, उन्ही बसो-ट्रेनो मे,उन्ही जगहो पर जहाँ कुछ घंटो पहले हमारे जैसे ही कई बेगुनाह लोगो ने अपनी जान गँवाई होती है,जब तक हम खुशकिस्मत है तब तक बचे हुए है, पर किसी भी वक्त हमारा समय आ सकता है ।एसे हमलो के बाद कुछ वक्त बीत जाता है और हम अपने जज्बे को भूलने लगते है तो फिर ये आतंकवादी आ जाते है नए तरीको के साथ हमारे जज्बे को एक बार फिर से जगाने ।ये कडवा है, किंतु यही सच भी है । पिछले तीन दिनो मे लगातार समाचार चैनल देखने के बाद, कुच नामी एंटी टेरर एक्सपर्टस के विचार सुनने के बाद मेरे विचार मे पाकिस्तान जो कि आतंकवाद के विश्व की राजधानी बनकर उभरा है की इस स्थिती के पीछे दो मुख्य कारण है , राष्ट्र पर कब्जे के लिये विभिन्न कबीलो का आपस मे टकराव और सेना और राजनीतीज्ञो मे सत्ता के लिये टकराव और वैचारिक मतभेद । कई बार तो राजनीतीक आकाओ को भी पता नही होता कि सेना क्या कर रही है और कारगिल जैसी घटनाए हो जाती है । कुल मिलाकर देश मे एकजुटता की कमी है ।किंतु ये बात हमारे राजनेताओ को समझ नही आती, वो हमे हर वक्त बाँटते रहते है ताकि उनके वोट बैंक सलामत रहे है । कभी धर्म के आधार पर , कभी जाति के आधार पर तो कभी हमे भाषा के आधार पर बाँटा जाता है । और इन नेताओ के बहकावे मे आकर हम आतंकवादियो के ये संदेश दे रहे है कि आओ हमे अपना निशान बनाओ हम तो स्वंय ही एक-दूसरे की जान लेने के लिये आमादा है,तुम आकर हमारा काम थोडा और आसान कर दो । अब समय आ गया है कि आम लोग एसे नेताओ के बहकावे मे न आए और एकजुट हो कर कुछ एसा करे कि एसे आतंकी हमारी तरफ आना तो दूर देख भी न सके । यदि हमे इनसे मुकाबला करना हो तो न केवल देश को बल्कि सारे विश्व को एकजुट होना पडेगा किंतु यदि शुरवात तो देश से ही करना पडेगा ।
आप करे शुरुवात हम करे शुरुवात तभी तो हम शायद आने वाली पीढीयो को एक सुरक्षित भविष्य की गारंटी दे सकते है ।

बुधवार, 19 नवंबर 2008

सामाजिक विषमताओ का भारत

हमारा देश सामाजिक विषमताओ से भरा हुआ है, नही जाति,धर्म और लिंग की विषमता ही नही एक और विषमता भी है । यहाँ पर क्रिकेट टीम का कप्तान तो अपने राज्य का सबसे ज्यादा टैक्स पेयर है और करोडो कमाता है, किंतु शायद फुटबॉल और हॉकी टीम के कप्तान लाखो मे ही झूलते है । सरकारी स्कूल का आलसी (अधिकतर,कुछ को छोडकर) शिक्षक एक मोटी तनख्वाह, और रिटायर होने के बाद अच्छी पेंशन पाता है किंतु प्राइवेट विद्यालयो मेहनत करने वाले शिक्षक कम अपनी किस्मत को कोसते है,फिल्मे हिट होती है तो निर्माता - निर्देशक और स्टार कमाते है पर लगातार मेहनत करने वाले जूनियर आर्टिस्ट और टेक्निशियन दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से जुटा पाते है।आइटी मे हम आगे तो निकल गए है किंतु हमारी सरकार अपनी योजनाओ के माध्यम से अभी भी जरूरतमंदो तक पहुँच नही पाती । उसने किसानो के कर्ज तो माफ कर दिये किंतु इस से बैंको का नुकसान ही हुआ और कुछ सशक्त किसानो के कर्ज माफ हो गए ।सामाजिक स्तर पर हम आज भी इतने पिछडे है कि विदेशी हमे "तीसरी दुनिया" कहने से नही चूकते,भले ही उनके बैंक बैंलेंस का एक बडा हिस्सा हमारे देश से जाता हो ।इस विषय पर गंभीर विचार करने की आवश्यकता है न सिर्फ हमारे नेताओ बल्कि समाज को, हमे और आपको, हम सभी भारतवासियो को कि कैसे इस विषमता को कम किया जाए जिससे कि किसान आत्महत्या ना करे, मध्यमवर्गीय छात्र और उनके माँ-बाप अपने भी डॉक्टर बनने की सोच सके, हर कोइ सिर्फ सरकारी नौकरी की चाह न रखे , जो जहाँ चाहे जा सके, रह सके अपना जीवन - य़ापन कर सके । राष्ट्रीय स्तर पर आगे बढने के लिए सामाजिक सम रसता होना अंत्यंत आवश्यक है ।इस वक्त सारी दुनिया एक जबर्दस्त मंदी के दौर से गुजर रही है और हमारा देश भी इससे अछूता नही है । नौकरियो मे कटौती हो रही है,शेयर बाजार की हालत खराब है एसे मे यदि इनका मुकाबला कर पाने मे हम सक्षम न हो तो शायद २०२० तक सुपरपावर बनने का हमारा सपना सपना ही रह जाएगा ।

रविवार, 2 नवंबर 2008

सूर्यदेव की अराधना का पर्व - छ्ठ पूजा

मै बिहार के मिथिला - नगरी का मूल निवासी हूँ और हमारे यहाँ जितना महत्व वहाँ दिपावली को प्राप्त है, शायद उससे कुछ ज्यादा ही महत्व छ्ठ पर्व को प्राप्त है ।दो दिन तक चलने वाला यह पर्व मूलतः सूर्यदेव की अराधना का पर्व है जिसमे उगते और डूबते सूर्य की उपासना की जाती है । मै जिन दो वर्षो मे अपने मूल निवास स्थान दरभंगा मे छ्ठ पूजा के समय रहा हू उस छ्ठ पूजा की यादे आज भी मस्तिष्क मे उसी प्रकार ताजा है ।हर वर्ष इस पर्व के आने पर मुझे याद आ जाते है वो अनमोल कुछ क्षण जो मैने अपने दादा-दादी के साथ बिताए थे,क्योंकि अब वो हमारे साथ नही है । कडाके ठंड के बीच जल मे भूखे-प्यासे खडे-खडे रहकर सूर्यदेव की उपासना करना, उनसे अपने संतान के लिये लंबी उम्र की कामना करना,सोच कर ही मेरे रोंगटे खडे हो जाते है । इस पर्व को विधिपूर्वक करना अत्यंत ही कठिन है । और इसके साथ ही याद आता है "ठेंकुआ:" (मैदे को तल कर बनाई जानेवाली मिठाई) और "भुसुआ" (चावल के आटे से बननेवाले लड्डू ) का अलग से लगने वाले स्वाद !!
मुंबई शहर मे तो वो रोमांच नही है और "राज" नीती के ठेकेदारो ने इस पर्व के मनाने को भी एक मुद्दा बना दिया है । पिछले कुछ वर्ष से मै शाम के समय जूहू बीच पर जाया करता हूँ था पर भीड अत्याधिक होने की वजह से वहाँ ज्यादा देर रुक नहीं पाता पर "लिट्टी-चोखा" के स्टाल से उसका आनंद तो ले ही लिया करता हूँ ।

सोमवार, 27 अक्तूबर 2008

आप क्या सोचते है , "राहुल - राज " का कत्ल हुआ है य़ा एनकांउटर

आज सुबह दफ़्तर पहुँचते ही मोबाइल पर घर से फोन आया देखकर मै चौंक गया,मेरी माँ ने मुझे बताया कि अंधेरी-कुर्ला रोड पर बस में फायरिंग हूइ है ।मन में कौतूहल जगा कि जाने की माजरा क्या है इसलिए समाचार चैनलो के वेबसाइट्स टटोलने लगा । शुरवाती खबरो के मुताबिक जिस व्यक्ति की एनकांउटर मे मौत हुई उसका नाम राहुल राज है वह पटना का रहना वाला है और वह राज ठाकरे से बात करना चाहता था ।वह देशी तमंचा लेकर बस मे चढ गया और लोगो से कहने लगा कि उसे राज ठाकरे से बात करनी है,हालांकि उसने सभी यात्रियों से कहा कि उसकी उनसे कोइ दुश्मनी नही है और वह किसी को भी चोट नही पहुँचाना नही चाहता ।शायद,वह जोश में आकर अपनी बात लोगो तक पहुँचाना चाहता था, उसे लगा होगा कि एसा करने से वो कुछ दिनो की सजा ही पायेगा ।पर मुझे उसके हश्र को देखकर फिल्म "रंग दे बसंती" का क्लाइमेक्स सीन याद आ गया ।खैर जो कुछ भी हुआ हो इस पर मै अपनी राय पोस्ट के अंत में दूँगा, सर्व-सामान्य जनता की आवाज कहे जाने वाले राजनीतीक नेताओ के बयान कैसे आए उनपर एक नजर डालना जरूरी है ।महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री ने अपने बयान मे कहा कि पुलिस ने जो कुछ भी कार्रवाई की है वो सराहनीय है,मुंबई में गोली का जवाब गोली से दिया जाना ही उचित है और पुलिस ने वही किया है ।वही दूसरी ओर एकजुट हो कर के प्रधानमंत्री से मिलने गए बिहार के नेताओ ने न्यायिक जाँच की माँग करते हुए इसे एक हत्या करार दिया ।समाज के दो टुकडे करनेवाले इन बयानो से हालात और बिगड सकते है जहाँ एक ओर मराठी समाज उपमुख्यमंत्री के बयान को सही करार दे रहा है वही उत्तर भारतीय समाज अपने नेताओ लालू और नीतीश के बयानो को सही ठहरा है ।मै पाठको से विडीयो देखकर ये जानना चाहूँगा कि उनकी राय क्या है । इस विडीयो को देखकर एसा लगता है कि युवक कोइ पेशेवर अपराधी या आतंकवादी नही है हाँ वह जोश मे आकर अपने होश जरुर खो बैठा है । किंतु जब पुलिस ने उस पर गोलियाँ चलानी शुरु की तो वो डर के मारे बस की खिडकिया बंद करने लगा , उसने दस और पचास के नोटो पर अपना संदेश लिखकर के भेजा कि उसे राज ठाकरे से बात करनी है । हमारे देश मे जहाँ सुप्रीम कोर्ट से सजा प्राप्त मुजरिम को फाँसी देने के लिए इतना समय लगता है, वहाँ एक बेगुनाह को जान से मारने में पुलिस को केवल पंद्रह मिनटो का समय लगा । प्रत्यक्षदर्शियो का साफ कहना है कि उसने किसी भी यात्री को कोइ नुकसान नही पहुँचाया ।क्षेत्रवाद की राजनीती के बुरे परिणाम सामने आने लगे है,समय रहते यदि इस पर काबू नही किया गया तो इससे भी अधिक भयंकर परिणाम सामने आ सकते है ।इस पोस्ट को पढकर अपनी राय अवश्य दे ।विडियो एनडीटीवी के सौजन्य से

बुधवार, 22 अक्तूबर 2008

क्या हम हिंदुस्तानी नहीं है

मै मुंबई मे रहता हूँ, कल मै खुश रहना चाहता था क्योंकि भारतीय क्रिकेट टीम ने विश्व-चैंपियन ऑस्ट्रेलिया पर शानदार जीत दर्ज की थी । किंतु मेरी खुशी कम थी क्योकि रविवार को रेलवे भरती बोर्ड की परीक्षाए देने मुंबई आए उत्तर-भारतीय छात्रो को "मनसे" कार्यकर्ताओ ने बर्बरता पूर्वक पीटा था । मै भी बिहार का हूँ,इसलिए मै दुखी नही था मै हिंदुस्तानी हूँ इसलिए दुखी था ।इस कार्य के प्रेरणास्त्रोत "मनसे" संस्थापक राज ठाकरे को मुंबई पुलिस ने मंगलवार तडके गिरफ्तार किया । गिरफ़्तारी की खबर फैलते ही मनसे कार्यकर्ता एक बार फिर सडको पर उतर आए,कई ऑटोरिक्शाओ और टैक्सियो को आग के हवाले किया गया,कुछ बेस्ट की बसो पर भी हमले हुए,मेरे पिता जो कि काम से जल्दी बाहर निकल गये थे एक घंटे मे ही लौट आए । मै वैसे आमतौर पर घर से देरी से निकलता हूँ, और टेस्ट मैच का परिणाम भी निकलनेवाला था इसलिये मैच खत्म होने के बाद ही घर से निकला ।सडके सुनसान थी , ईक्का - दुक्का वाहन ही चल रहे थे , बीस मिनटो के इंतजार के बाद मुझे बेस्ट की बस मिली । दफ़्तर पहूँचने पर भी चारो ओर इसी बात की चर्चा थी "भैया " विरुद्ध "धरती-पुत्र" की ।मेरी एक मराठी महिला सहकारी का कहना था " राज ठाकरे जो भी कुछ कर रहे है वो हम मराठीयो की भलाइ के लिये कर रहे है यदि उत्तर भारतीय मुंबई मे नही आएंगे तभी हमारे मराठी युवा बेरोजगारी से बच पाएंगे " जब मैने इस पर उन्हे कहा कि इसके लिए परीक्षा देने आए विद्यार्थीयों को पीटने की क्या जरुरत थी तो मेरे एक दूसरे सहकारी ने जवाब दिया कि इन नौकरियो के लिये इश्तेहार केवल उत्तर भारतीय अखबारो मे दिये जाते है जबकि महाराष्ट्र के मराठी अखबारो मे नही ।इस विषय पर मै पोस्ट के अंत मे या अगली पोस्ट मे लिखूँगा, इन बातो का जिक्र मैने इसलिए किया क्योकि इन संवाद-परिसंवाद ने मुझे ये सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या हम हिंदुस्तानी नही है ।हर कोइ ये क्यो कहता है कि वो मराठी है , बिहारी है , पंजाबी है ये है, वो है, क्या वो इनमे से कुछ भी होने से पहले हिंदुस्तानी नही है । हमारे देश मे साधनो के अनुपात मे जनसंख्या अधिक है इसलिए नौकरियाँ पाने के लिये लोगो की लंबी लाइने लगती है, लेकिन मैने मुंबई मे मैने ये कभी नही देखा कि कोइ मेहनती और काबिल युवा बेरोजगार बैठा है,जिसने भी सच्ची लगन से मेहनत की है उसे देर - सवेर सफलता अवश्य मिली है ।हमारे देश का संविधान ये कहता है कि देश का कोइ भी नागरिक देश के किसी भी हिस्से मे जा कर रह सकता है अपना जीवन - यापन कर सकता है लेकिन क्या राज ठाकरे जैसे नेता अपने राजनीतीक स्वार्थ के लिए खुले-आम संविधान को मानने से इनकार नही कर रहे है । क्या एसे नेता वही पुरानी सफल नीती जिसके बल पर अंग्रेजो ने हम पर १५० वर्षो तक शासन किया, फिर से नही आजमा रहे है ।ये जनता को टुकडो मे बाँट देना चाहते है ताकि उनपर शासन कर सके ।जब तक हम स्थानीय स्तर से उपर उठ कर,राष्ट्रीय स्तर पर नही सोचेंगे तब तक न तो हम निजी तौर पर और न ही एक राष्ट्र के रुप मे आगे नही बढ सकते है।

शनिवार, 18 अक्तूबर 2008

मेरे सपनो की उडान

मेरे सपनो की उडान ,
सर पर हो एक अपनी छत
शहर मे हो एक अपना मकान
चार पहियों वाला एक वाहन हो
जिसमे घ्रर से दफ़्तर
दफ़्तर से घर आवागमन हो ।
घर मे एक सुंदर पत्नी हो
दफ़्तर मे एक सुंदर संगिनी हो
बॉस सदा रहे मुझ पर मेहरबान
मेरे सपनो की उडान ।
पत्नी मुझसे कभी न रूठे
संगिनी का साथ भी कभी ना छूटे
हफ़्ते भर हो संगिनी का संग ।
सप्ताहांत मे पत्नी रखे मेरा ध्यान
पत्नी संग छुट्टी मनाउँ
दूर हो एसे हफ़्ते भर की थकान
मेरे सपनो की उडान ।
मुझ संग हो न कोइ अनहोनी
बम भी फटे तो मुझसे दूर
जिंदगी है छोटी ,बडे बडे है अरमान
मेरे सपनो की उडान ।

गुरुवार, 16 अक्तूबर 2008

अब आगे बढना है हमे

पथ मे कांटे कई बिछे है ,मार्ग रोकती बाधाए ,
लांघ कर इनको है जाना ।
पाषाण-सम बाधाओ को तोडकर, नदी की मानिंद बहना है हमे,
आगे बढना है हमे, अब आगे बढना है हमे ।
मेहनत से हम जी न चुराए,
साथ मिलकर श्रम-नीर बहाए ।
स्वर्ण-सम उज्जवलित रहने के लिये , श्रम-अग्नि मे तपना है हमे ,
आगे बढना है हमे, अब आगे बढना है हमे ।
मोह तुमको बीच पथ मे रोकेगा और टोकेगा,
मंजिल हो जायेगी दृष्टि से ओझल ।
मोह-पाश के इस चक्र्व्यूह को, तोडकर निकलना है हमे ,
आगे बढना है हमे, अब आगे बढना है हमे ।
अब समय आ गया है,
दुनिया को हम ये दिखा दे हम मे कितना सामर्थ्य है ।
विश्व रुपी इस गगन मे, सूर्य सा चमकना है हमे ,
आगे बढना है हमे, अब आगे बढना है हमे ।


ये लाइने मैंने ख़ुद को प्रोत्साहित करने के लिए लिखी है :

शनिवार, 11 अक्तूबर 2008

जन्मदिन मुबारक महानायक

आज अमिताभ बच्चन जी का जन्मदिन हैं किन्तु इसे मानाने के लिए उन्हें घर की छत नसीब नहीं हुई । कल देर रात पेट में दर्द की शिकायत की वजह से उन्हें मुंबई के लीलावती अस्पताल में भरती करना पड़ा , अस्पताल में उनका पूरा परिवार उनके साथ हैं हलाकि डोक्टोरो ने उन्हें खतरे से बाहर बताया हैं । मैं उनकी शीघ्र स्वस्थ लाभ की कामना करते हुए इश्वर से उनकी लम्बी आयु के लिए कामना करता हूँ और हाँ इस वक़्त टीवी पर उनके वर्ल्ड टूर का आनंद भी ले रहा हूँ ।

मंगलवार, 7 अक्तूबर 2008

अलविदा दादा


आज सौरव गांगुली ने संन्यास लेने की घोषणा कर दी है । इसके साथ ही भारतीय क्रिकेट इतिहास मे एक युग का अंत हो गया ।उनके संन्यास लेने के बारे में चर्चा तो काफ़ी दिनो से चल रही थी किंतु इस प्रकार वे इतनी जल्दी इसकी घोषणा कर देंगे ये किसी ने नही सोचा था । कुछ लोग इसे दादा और बोर्ड के बीच हुआ एक करार मानते है किंतु मेरी राय में यह उनके लगातार परीक्षण और स्वंय को साबित करने का दबाव का परिणाम हैं ।आगामी श्रॄंखला में स्वंय़ को चयनित करवाने के लिए उन्हे अपने कई वर्ष बाद आये सुरेश रैना की कप्तानी में भारतीय ए टीम में खेलना पडा , इस घटना ने उनके आत्मसम्मान को जो ठेस पहूँचाई उसका अंत उनके संन्यास लेने की घोषणा के साथ ही हुआ । जब भारत के लिए टेस्ट क्रिकेट खेलने वे पहली बार लॉर्डस के एतिहासिक मैदान पर उतरे तो अपनी पहली पारी में ही शतक ठोंक कर उन्होंने अपने आगमन का अहसास करा दिया । उनका कैरियर उतार - चढाव से भरपूर रहा पर उसमे एक सुखद मोड तब आया जब मैच फिक्सिंग के काले साये की वजह से भारतीय कप्तान का पद खाली हुआ और सिनीयर खिलाडी सचिन तेंदुलकर ने काँटो का ताज पहनने से इनकार कर दिया ।ऑफ साइड मे भगवान का दर्जा रखने वाले इस जुझारु खिलाडी की कप्तानी में भारतीय टीम ने कई मुकाम हासिल किये, जिनमे पाकिस्तान मे टेस्ट और वन-डे श्रॄंखला में जीत, नाटवेस्ट ट्रॉफी और वर्ल्ड कप फाइनल प्रमुख है । सौरव गांगुली को कपिल देव के पश्चात ऎसे भारतीय कप्तान के रुप मे याद किया जाएगा जिन्होंने भारतीय क्रिकेट को एक नये मुकाम पर पहुँचाया । सौरव गांगुली के संन्यास लेने से टीम ने एक जुझारु और संर्घषशील खिलाडी को खो दिया है जिसकी जगह शायद ही कोई ले सके ।

सोमवार, 6 अक्तूबर 2008

विडंबना - २

पिछले दिनों कुछ आवश्यक कार्य से मुझे इलाहाबाद जाना पड़ा , वहा पर रात को देरी से पहुँचने की वजह से मुझे कुछ घंटे प्लेटफोर्म पर ही बिताने पड़े , इस पोस्ट को मैने डायरी में तो वही बैठे-बैठे ही लिखा किंतु आपके समक्ष अब प्रस्तुत कर रहा हूँ ।
रात्रि के करीब दो बजे मेरी ट्रेन इलाहबाद स्टेशन पर पहुंची , भूखा होने की वजह से मैं किसी अच्छे होटल की तलाश में स्टेशन से बाहर निकला तो एक डिसेंट होटल मिला अन्दर जाकर मैंने रोटी जो कि गर्मागर्म तंदूरी से निकल रही थी और एक सब्जी आर्डर की । खाना खाते हुए मेरी दृष्टि होटल की दीवार पर लिखे हुए संदेश पर गई जहा बड़े अक्षरो में लिखा था "धुम्रपान निषेध", "शराब पीना मना हैं " । खैर खाना खाते हुए ही जब मेरी दृष्टि मेरे दाई ओर स्थित टेबल पर गई तो मैंने देखा की वहा पर शराब पी जा रही थी और वेटर उन्हें बाकायदा चखना भी मुहैया करा रहा था । मैंने मेरे टेबल पर आए हुए वेटर से जब पुछा तो उसने मुझे बताया की वे लोग ट्रक ड्राईवर हैं और नियमित ग्राहक हैं इसलिए उन्हें ये सुविधा प्राप्त हैं।
हमारे देशवासियॊं में ये एक बात हैं की हम उन लोगो के प्रति जो की नियमित हमारे संपर्क में आते हैं और जिनसे हमारा तनिक भी लगाव होता है हम उन्हें विशेष सुविधाये मुहैया कराने में पीछे नही हटते और कभी - कभी तो कुछ महीनो की जान-पहचान में ही हम लोगो पर पूर्ण रुप से विश्वास कर लेते है,इस विश्वास को पक्का होने मे कम समय लगता है जब संबधित व्यक्ति से हमारा कोइ व्यवसायिक फ़ायदा जुडा हो,पूर्ण रूप से उनके बारे में जाने बिना ये धारणा बना लेते हैं की वे लिए हम जाने अनजाने उन्हें कुछ न कुछ विशेष सुविधाए प्रदान करते हैं ।वर्तमान समय मे जब सुरक्षा की दृष्टी से हम एक नाजुक मोड पर है हमें हमारी इस पुरानी आदत को बदलना होगा ।
हमेंशा सतर्क रहे और किसी भी व्यक्ति के उपर आसानी से विश्वास न करे इसी मे समाज और देश की भलाई है और इसकी शुरवात हम उपर लिखे हुए छोटे उदाहरण से कर सकते हैं अपने नियमित ग्राहक को भी नियम के खिलाफ़ शराब न परोसकर

गुरुवार, 2 अक्तूबर 2008

इलाहाबाद प्रवास - १

किसी कारणवश मै दो दिन के लिये इलाहाबाद प्रवास पर गया था । जिस स्थान पर मै ठहरा था वह सन्गम के अत्यन्त निकट और गन्गातट के ठिक सामने स्थित था,घर की छ्त पर बैठ कर हुम गंगा के विहन्गम रूप का दर्शन कर सकते थे ।मैं और मेरे एक रिश्तेदार जो कि दिल्ली से आए थे,ने विचार किया कि गर सन्गम के इतने करीब आ गये है तो सन्गम-स्नान कर ही लेना चाहिये इस्लिये हम बडे हनुमान जी के मंदिर के पास स्थित किलाघाट पहुँचे । इस घाट का नाम किलाघाट इसलिए है क्योंकि यहाँ पर एक किला है । यहाँ के मल्लाहों ने हमें बताया कि इस किले की निंव तो सम्राट अशोक ने रखी थी किंतु उसके निर्माण का कार्य बादशाह अकबर ने पूरा किया ।यमुना नदी के तट पर स्थित इस किले का कुछ हिस्सा नदी के भीतर भी फैला हूआ हैं ।चूंकि अब इस किले में सेना का शस्त्रागार है इसलिये संपूर्ण किले का भ्रमण करने की मनाही है । किले के भीतर जहाँ पर ३९ देवी-देवताओ की मूर्तिया रखी है वहाँ पर आप जा सकते है । इन मूर्तियों के बारे में स्थानिय मछुआरों ने हमें बताया कि जब सम्राट अशोक ने किले की नींव रखी थी तो किले के भीतर मंदिर बनवाने के लिये ४० देवी-देवताओ की मूर्तियाँ बनवाई थी किन्तु जब वे किले का निर्माण पूरा ना करवा सके तो मूर्तियाँ तट पर हीं छोड दी । कालांतर में जब बादशाह अकबर ने किले का निर्माण कार्य पूरा करवाया तो उन्होने सारी मूर्तियाँ किले के भीतर रखवाने का हूक्म दिया । ३९ मूर्तियाँ तो किले के भीतर चली गई किंतु आखरी हनुमान जी की मूर्ती लाख प्रयासो के पश्चात भी किले के अन्दर नहीं ले जाई जा सकी । इसी मूर्ती के इर्द- गिर्द बने मंदिर को बडे हनुमान जी के मंदिर के नाम से जाना जाता है , और एसा मानना है कि गंगा जी हर वर्ष बाढ के समय हनुमान जी को स्नान कराती है ।इलाहाबाद-यात्रा की कुछ और बातें अगली पोस्ट में ।

गुरुवार, 25 सितंबर 2008

विडम्बना

मैं अमिताभ बच्चन के ब्लॉग का नियमित पाठक हूँ और हर रोज उनके ब्लॉग को पढता हूँ । आज उनके एक पोस्ट के अंत में उन्होंने , उनके पास आए हुए एक एसेमेस का उल्लेख किया हैं , अंग्रेजी में आए हुए उस एसेमेस का हिन्दी अर्थ मैं यहाँ पर उल्लेख कर रहा हूँ
"नम्बर एक निशानेबाज ने ओलंपिक में स्वर्ण जीता तो सरकार ने उसे एक करोड़ का इनाम दिया, दूसरे नम्बर एक निशानेबाज ने अपने प्राण आतंकवादियों से लड़ते हुए त्याग दिए सरकार ने उसे पॉँच लाख रुपये दिए , सोचिये की असली विजेता कौन हैं "
यह संदेश हम नौजवानों के मन में सवाल पैदा करता हैं कि, देश के लिए प्राणों की आहुति देनेवाले नौजवान यदि अपने परिवार की चिंता करने लगे तो इस देश में क्या हालात पैदा होंगे वही दूसरी ओर ये भी सोचने को मजबूर करता हैं की देश के लिए मर मिटने का जज्बा युवाओ से सदा के लिए ख़त्म भी हो सकता हैं । आतंकवाद रुपी दानव को ख़त्म करने के लिए हमें उसी जज्बे की जरूरत है जो की इंस्पेक्टर शर्मा जैसे जांबाज सिपाही ने दिखायी हैं, जो अपने बीमार बेटे की सुधि लेने की बजाय आतंकवादियों से लोहा लेने के लिए बिना किसी सुरक्षा के ही पहुँच गया, किंतु सरकार का ये सौतेला व्यवहार देश की सेवा करने को उत्सुक युवाओं के मन को बदल सकती हैं । आज के समय में केवल सम्मान और मैडल से ही जिंदगी नही चलती, जीवन को चलाने के लिए पैसो कि आवश्यकता होती हैं, जिसकी कमी हमें ऐसे वीरो को और उनके शहीद होने के पश्चात उनके परिवार को नही होनी देनी चाहिए तभी देशप्रेम का जज्बा कायम रहेगा और भगत सिंह के इस देश में हर कोई चाहेगा की उसके परिवार का भी कोई व्यक्ति देश के लिए प्राण न्योछावर करे ।
अपने इस पोस्ट को अंत करते हुए एक हास्यकवि द्वारा कही गई बात का उल्लेख करता हूँ । कवि कहता हैं की इस वक्त हर समय हर व्यक्ति यही चाहता हैं की उसके पड़ोसी का बेटा भगत सिंह जैसा बने उसका बेटा नही क्योकि भगत सिंह की मृत्यु तो जवानी में ही हो गई थी , यदि उनका बेटा यदि जवानी में शहीद हो गया तो उनके बुढापे का क्या होगा ।
सरकार यदि इस कवि की बात को सच होने से रोकना हैं तो अपना रवैया और दृष्टिकोण दोनों ही बदलने होंगे ।

शुक्रवार, 19 सितंबर 2008

फिल्मे जो मैंने देखी

पिछले हफ्ते मैंने तीन अलग - अलग फिल्म देखि दो फिल्म तो एक ही विषय पर बनी थी किंतु तीसरी फ़िल्म डी लास्ट लीअर अमिताभ बच्चन की पहली अंग्रेज़ी फ़िल्म का विषय अलग था तीनो ही फिल्मो में अभिनय और निर्देशक द्वारा कलाकार से उसके अन्दर की संपूर्ण कला निचोड़कर परदे पर डाल दी हो ऐसा भाव साफ़ दिख रहा था अन्य दो फिल्मे थी आतंकवाद को पृष्ठभूमि में रखकर बनी फिल्मे "मुंबई मेरी जान" और " ऐ वेडनेसडे ". अनुपम खेर , परेश रावल , के के मेनोन,अमिताभ जी और अर्जुन रामपाल ने अपने परिपक्व अभिनय से इन फिल्मो को मेरे और मेरे जैसे कई और सिनेमा प्रेमियों के दिलो में हमेशा के लिए अंकित हो गए हैं ये पोस्ट मै सिर्फ़ इसलिए लिख रहा हूँ क्योकि ये फिल्मे देखने पश्चात मुझे इन फिल्मो की तारीफ़ करने की इच्छा हुई और मैंने कई मेरे दोस्तों को इन फिल्मो को देखने की सलाह भी दी और उनमे से कुछ ने तो मेरी सलाह मानी भी इस हफ्ते श्याम बेनेगल निर्देशित मेरे जीवनकाल की पहली कॉमेडी फ़िल्म वेलकम टू सज्जनपुर आ रही हैं जिसे देखने के लिए मैं उतना ही बेकरार हूँ जितना मेरी बेकरारी सिंह इस किंग ने बधाई थी

रविवार, 14 सितंबर 2008

गणेशोत्सव और राजनीती

आज गणेश विसर्जन हो गया है , ग्यारह दिनों का उत्सव समाप्त हो गया और रात के इस वक्त कुछ अप्रिय नही घटा तो शांतिपूर्वक ही बीत गया । कल दिल्ली के हादसों की वजह से सुरक्षा के इंतजामात काफी कड़े किए गए थे किंतु जब मैं अपने इलाके बोरीवली पश्चिम के गोराई बीच की ओर जा रहा था लोगो की जबरदस्त भीड़ के बीच असहाय से लग रहे पुलिसवालों को देख कर लग रहा था जैसे कुछ भी हो जाए इनके लिए किसी भी चीज को काबू में कर पाना नामुमकिन होगा । चारो तरफ़ हर ओर अलग - अलग राजनितिक दलों के पंडाल जो की गणेश भक्तो के स्वागत और उनके द्वारा अपने वोटबैंक को मजबूत करने की कोशिश कर रहे थे । हर ओर अलग - अलग लाउड - स्पीकरों द्वारा अपने दल का और अपने प्रमुखों का नाम ले लेकर जनता के दिलो में उनकी जगह बनाने की कोशिश कर रहे थे । हाँ एक खास बात और थी इन राजनितिक मंचो में , कुछ मंचो ने खास तौर पर डीजे का इंतजाम भी कर रखा था और उनमे से एक मनसे का भी मंच था जिस के लाउड - स्पीकर से केवल हिन्दी गाने ही सुनने को मिल रहे थे । शिवसेना के मंचो पर कम चहल पहल देखकर ऐसा लग रह था जैसे इस वर्ष उनकी आधी ताकत जो मनसे ने छीन ली , और जो आधी बची हुई थी वो भी धीरे - धीरे कम होती जा रही हैं । आजादी पाने के लिए, लोगो में जागरूकता लाने के लिए और उन्हें एकजुट कर एक मंच पर लाने के लिए जिस त्यौहार की शुरुवात लोकमान्य तिलक ने की थी वो अब एक वोट पाने के लिए जरिया बन गया हैं उत्सव के द्वारा जनता को आकर्षित करने के लिए प्रचार प्रसार किया जा रहा हैं और पैसे पानी की तरह बहाए जा रहे हैं । अगर इश्वर - कृपा से प्राप्त इस धन का ज्यादा हिस्सा सामाजिक कार्यो में लगाया जाए तो बेहतर होगा और इस बिहार बाढ़ - पीडितो को इसकी सबसे ज्यादा जरुरत हैं ।

शुक्रवार, 12 सितंबर 2008

संकोच


कैसे कहे तुमसे मन में कितने अरमान हैं , होठो पर ताला लगा कर दबाये रखते हैं, पास तुम बैठी रहती हों पर मन से दूरी से बनाये रखते हैं ।
वक्त गुजरता हैं बड़ी मुश्किल से हमारा ,पर खैर अब इसकी आदत सी हो गई हैं ,
तुमसे कुछ न कह पाने की कमजोरी, अब हमारी बेबसी हो गई हैं ।
इजहारे मुहब्बत कैसे करे हम ये आता नही हैं हमें , तुम्हारे आशिको की भीड़ में खो जाते हैं
कुछ वक्त तुम्हारे साथ तन्हाई में नही गुजार पाते
तुम्हारे दीवानों में एक हमारा भी शुमार हैं , ये तुमको बतला नही पाते
शत्रु मेरा बन गया हैं अब तो ये संकोच मेरा !!

बुधवार, 10 सितंबर 2008

दर्शन कब दोगे "राजा"


पिछले पन्द्रह वर्षो से मुंबई में रह रहा हूँ पर कभी पंडाल में जाकर लालबाग के राजा का दर्शन नही कर पाया हूँ पिछले शनिवार की रात हिम्मत करके पंहुचा कुछ दोस्तों के साथ किंतु रात भर उस भीड़ में यहाँ - वहा करने के पश्चात जब करीब सुबह पाँच बजे ऐसा लगा की अगले दिन रात तक भी दर्शन होने की सम्भावना नही हैं तो हारकर हम सब लौट आए । ऐसा लगता हैं मानो राजा हमें अभी अपने दर्शन का लाभ नही देना चाहते अगले दिन जब मैंने अख़बार पढ़ा तो पता लगा की शनिवार की रात को रिकॉर्ड संख्या में लोग लालबाग पहुंचे थे । रात के दो बजे सडको पर ऐसी चहल - पहल थी मानो जैसे शाम के सात बजे हों । जब पानी की बोतल लेने के लिए हम एक दुकान पर पहुंचे तो उन्होंने भी ये माना की आज की भीड़ उनकी अपेक्षाओ से भी अधिक हैं , दस रुपये की पानी की बोतल के लिए पन्द्रह रुपये लेते हुए उन्होंने जवाब दिया । उनके जवाब में सुबह दुकान देरी से खोलने की खीज भी थी खैर जब हम लौट रहे थे तो भीड़ के शोर से असमय ही नींद से जग गए लोग खिड़कियों झांकते हुए दिखाई दे रहे थे वो लालबाग के राजा का उतना ही सम्मान करते होंगे किंतु दस दिनों तक तो शायद उन्हें सोने में दिक्कत तो होती ही होगी ।

गुरुवार, 14 अगस्त 2008

स्वंतंत्रता दिवस और अभिनव


पन्द्रह अगस्त की इस भोर में ब्लॉग लिखते हुए आजादी का एहसास और अभिनव बिंद्रा द्वारा जीते गए पहले व्यक्तिगत स्वर्ण पदक की खुशी दोनों ही अपने चरम पर हैं। मैंने प्रथम महिला रास्ट्रपति का देश के नाम संदेश भी सुना आतंकवाद उनके इस भाषण प्रमुख केन्द्र था । खैर छोडिये इन बातों को ये वक्त अभिनव बिंद्रा द्वारा जीते गए प्रथम स्वर्ण पदक की खुशी मानाने का हैं , सौं वर्षो से भी अधिक ओलंपिक खेलो के इतिहास में हिंदुस्तान ने अबतक ८ स्वर्ण पदक जीते हैं पर ये सारे के सारे टीम खेल हॉकी में जीते हैं इसलिए अभिनव ने ये पुराना हिन्दुस्तानी सपना पुरा करके अपना स्वर्ण अक्षरो में इतिहास में दर्ज करा लिया हैं । पदक जीतने के बाद उनके चेहरे के साधारण भाव जिन पर सफल होने की कोई भंगिमा नही थी उनके अडिग निश्चय और ख़ुद पर भरोसा करने का प्रतिक हैं साथ ही साथ ये भारत को तथा भारतीय खेलो को नई उँचइयो तक ले जायेगा साथ ही साथ हर खिलाड़ी को ये याद दिलाएगा की हम भी स्वर्ण पदक जीत सकते हैं ।

शुक्रवार, 1 अगस्त 2008

मेडिकल टूरिस्म एक हकीक़त या सपना

चिकित्सा छेत्र में अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों की संख्या में लगातार कमी आ रही हैं । एक अंग्रेजी दैनिक में छापी यह ख़बर मेरा ध्यान इसलिए खींचती हैं क्योकि मेरे सपनो में भी यह पेशा आता था । पर शायद अच्छी आर्थिक स्थिति नही होने के कारण शायद मैं इस ओर नही जा पाया और एक कन्वेंशनल स्टडी की । फिर भी इस ख़बर पर आते हुए अख़बार के अनुसार लम्बी पढ़ाई के पश्चात कम कमाई होना इसका प्रमुख कारण हैं । अत्यधिक तनाव हम के अधिक घंटे और कभी कभी दुर्घटना के शिकार हुए लोगो के परिजनों द्वारा दुर्व्यवहार इस पेशे से जुड़ी कुछ आम समस्याए हैं . हमारा ये सपना रहा हैं की सस्ते और बेहतर चिकित्सा सुविधाए अपने देश में तैयार करके हम मेडिकल टूरिस्म का प्रमुख केन्द्र बने किंतु यदि कुशल डौंक्टरो की ही कमी हो जायेगी तो ये शायद ये सपना ही रह जाएगा ।

शनिवार, 19 जुलाई 2008

हफ्ते का ब्यौरा

साँझ ढलते ही घर की ओर रुख करते हैं हम ,
मौका मिले तो कुछ इधर उधर तांक - झांक करते है हम

कभी इस मॉल में कभी उस स्टोर पे रुकते है हम

जेबे हलकी होती हैं शामो को ही ।

मन मचलता हैं चाट की दुकानों पर

पिज्जा - बर्गर देख मुँह में पानी आता हैं

जाम छलकाने को जी चाहता हैं भीगी शामो में

आज कर लेते हैं बाहर हीं डिनर मन में यही ख्याल आता हैं

नई फ़िल्म के हीरो की ड्रेस पसंद आती हैं

स्टाइल हमारा भी कुछ नया हो यही सोचते हैं

स्टोर्स में ऑफर तो कई हैं खीच ले जाती हैं ये बात हमें

नित नए ढंग से संवरने का ही ख्वाब हम देखते हैं .

हर शुक्रवार को नई फ़िल्म आती हैं

शनिवार के शाम का प्रोग्राम बनवाती हैं

सन्डे तो छुट्टी का दिन हैं इसलिए शनिवार की रात फ़िल्म देखकर ही बिताते हैं .

अलसाया सा दिन हैं ये रविवार का

पर राशन तो हैं लाना हफ्ते भर का

दुकानों के चक्कर और मॉल में जाना

हो सके तो लंच बाहर ही कर आना .

ये हैं ब्यौरा हफ्ते भर जाने कब जाए गुजर

आया सोमवार लगो काम पर यही हमारी जिंदगी का सफर ।

रविवार, 18 मई 2008

विश्व का एक असुरक्षित कोना

वैसे जब इन लोगो का आईपील में काम करने का अवसर मिला साथ ही साथ केवल कुछ दिनों तक भारत में रहकर अत्यधिक कमी करने का मौका मिला तो उसे बिना कोई सोच विचार किए ही उसे स्वीकार कर लिया परन्तु आज जब जयपुर के आतंकवादी हमले के पश्चात उन्हें ज्ञात हुआ है की वे दुनिया के सुरक्षित हिस्से में नही हैं । यह पर मैं जिक्र करना चाहता हूँ राजस्थान रोयाल्स टीम के सहायक कोच टेरी जेंनर का जो की ऑस्ट्रेलिया से आते हैं और इश्वर कृपा से उनकी धरती पर ऐसे आतंकवादी हमले नही हुए हैं । श्री जेनर ने अपने बयां में कहाँ हैं की मेरे परिवार वाले इस बात से खुश नही हैं की मैं दुनिया के एक असुरक्षित कोने में हूँ । श्रीमान जेनर से एक सवाल यह पूछने की अवास्यकता हैं की भारत देश में आतंकवादी हमले होते है ये बात तो उनको उस वक्त भी पता होगी ही जब उन्हें ये ऑफर मिला होगा किंतु शायद उस वक्त उस पर भरी गई रकम देखकर उनका मन इन बातो को सोचने की दूरदर्शिता खो बैठा होगा । यहाँ पर मैं उल्लेख करना चाहता हूँ सुनील गावस्कर के शब्दों का जो उन्होंने मिड डे अख़बार के अपने कालम में लिखा हैं की भारतीय क्रिकेट इस समय सोने की बहती नदी के समान हैं और इसमे पूरे विश्व के खिलाड़ी हाथ और सहायक कर्मचारी जैसे कोच फिजियो इत्यादी अपना हाथ धो कर धन बटोर रहे हैं फिर भी इनके मन में उस देश के प्रति तनिक भी सम्मान नही हैं जिसने शायद इन जैसे लोगो के बिल्कुल ख़त्म हो चुके कॅरिअर को नई दिशा और चेतना दी हैं। हमारे देश में अतिथि देवो भवः की परम्परा रही हैं और इसका अनुभव ऑस्ट्त्रलियाई खिलाडियों ने बखूबी किया जब हाल की श्रंखला के बाद उनके खिलाडियों का हमने तहे दिल से स्वागत किया एवं उत्साह बढाया फिर भी श्री जेनर जी द्वारा दिए गए बयान आहात करते हैं और हमारे देश की ग़लत तस्वीर पेश करते हैं ।

गुरुवार, 24 अप्रैल 2008

देख तमाशा क्रिकेट का


aaeepiiael namak ek tamasha apne pure shabab par shuru hai इसकी वजह से क्रिकेट का एक नया रूप देखने को मिला है और पूरा देश इसकी अपने ही क्षेत्र क


आठ apne kshetra ke सफल उद्योगपतियों द्वारा खरीदी गई आठ टीम एक दुसरे से मुकाबला kकर रही हैं । ये आठो टीमे आठ अलग अलग भारतीय शहरो का प्रतिनिधित्वा कर रही है । इस मुकाबले कोजो की क्रिकेट का सबसे छोटा किंतु अत्यन्त ही रोमांचक संस्करण है और बॉलीवुड के तडके के साथ अत्यन्त ही सफल साबित हो रहा है । हमारे देश में दो चीजे ही देश को पूर्ण मनोरंजन करती हैं एक तो बॉलीवुड की फिल्म और दूसरा क्रिकेट इसलिए जब जब इन दोनों का संगम होता हैं तो लागन जैसee सफल चीजे पेडदा होती है कमोबेश इसी तरह का kअमल आइपील ने कर दिखाया हैं इसमे न केवल bollywood का glamoour और क्रिकेट का रोमांच dono samras ho गई हैं और ये सत्य ही हैki ise manoranjan ke baap ka dara diya jaa sakta hai .


आइपीएल ने न केवल भारत को क्रिकेट जगत में एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में स्थापित किया है बल्कि कई देशो के खिलाड़ियों को एक साथ लाकर विश्व क्रिकेट को एक नई दिशा प्रदान की हैं । कौन भूल सकता हैं इशंत शर्मा दवाra रिक्की पोंटिंग को डाला गया वह अत्यन्त महत्वपूर्ण स्पैल जिसने भारत को पर्थ टेस्ट में जीत दिलाई। और शायद उसे इशंत शर्मा को जानने का मौका नही मिलता अगर आइपील न होता ।




FIGHT OF COVID - VIEW FROM A COMMONER

THE SITUATION IS GRIM AND A VIRUS HAS TAKEN US ALL INTO A SITUATION THAT WE ALL WANT TO GET OUT OF, BUT ARE ANXIOUS, RELUCTANT AND UNABLE ...